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________________ जिसका नाम कालक था। भाई और बहन दोनों ने श्रामणी प्रव्रज्या अंगीकार की। यही कालक जैन धर्म के प्रभावक आचार्यों में 'कालकाचार्य' नाम से विख्यात हैं। एक बार सरस्वती आर्या उज्जयिनी नगरी में पधारीं । वहां पर उस समय गर्दभिल्ल नामक राजा का राज्य था जो स्वभाव से उद्दण्ड था। साध्वी सरस्वती के रूप पर उसकी दृष्टि पड़ी तो वह उस पर मोहित हो गया और उसने अपने अनुचरों से साध्वी का अपहरण कराकर उसे अपने रनिवास में पहुंचवा दिया। सरस्वती अपने धर्म पर अडिग रही । प्रतिष्ठित नागरिकों और कालकाचार्य ने राजा को उसके अनार्य कार्य के लिए समझाया और निवेदन भी किया कि वह साध्वी सरस्वती को ससम्मान मुक्त कर दे । परन्तु कामान्ध और दर्पान्ध गर्दभिल्ल ने साध्वी सरस्वती को मुक्त करने से इन्कार कर दिया। इससे कालकाचार्य ने जिन शासन के गौरव तथा साध्वी बहन के शील की रक्षा के लिए गर्दभिल्ल को दण्डित करने का संकल्प कर लिया। कालकाचार्य ने दूर देशों की एक लम्बी यात्रा की और कुछ पराक्रमी राजाओं को प्रभावित कर उनसे गर्दभिल्ल पर आक्रमण कराया। अंततः गर्दभिल्ल को उसके किए का दण्ड प्राप्त हुआ और साध्वी सरस्वती को ससम्मान मुक्त कराया गया । कामान्ध नरेश के बन्धनों में लम्बे समय तक रहने पर भी साध्वी सरस्वती ने अपने शीलधर्म पर आंच नहीं आने दी जो उनकी उत्कृष्ट चारित्र निष्ठा का प्रमाण है। (देखिए -कालकाचार्य) (ङ) सरस्वती (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है । (देखिए - कमला आर्या ) -ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., वर्ग 5 अ. 32 सर्वज्ञभा कंचनपुर के सेठ धनसेन की पुत्री जिसका विवाह नगर सेठ धर्मसेन के पुत्र चन्द्रसेन से हुआ। सर्वज्ञ तन-मन-प्राण में धर्म रचा-बसा था । कालक्रम से उसने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम इन्द्रसेन रखा गया। इन्द्रसेन दो वर्ष का हुआ तो एक दिन सर्वज्ञप्रभा उसे गोद में लेकर पितृगृह से श्वसुर गृह जा रही थी। जब वह राजमहल के नीचे से गुजर रही थी तो उसने नगर नरेश कनकसेन को गवाक्ष में बैठे हुए अपनी रानी से आमोद-प्रमोद करते देखा, उन्हें देखकर सर्वज्ञप्रभा के मुख से मुस्कान फूट पड़ी। राजा की दृष्टि सर्वज्ञप्रभा पर ही । वह उसकी मुस्कान का कारण जानने को उत्सुक हो गया। उसने सर्वज्ञप्रभा को अपने पास बुलाया और उसकी मुस्कान का कारण पूछा। सर्वज्ञप्रभा ने कहा, महाराज ! इस मुस्कान का कारण मैं आपको फिर बताऊंगी। अभी मुझे शीघ्र जाना है। जौहरी बाजार के मोड़ पर मेरी मृत्यु मेरी प्रतीक्षा कर रही है। यहां से मरकर मैं आपके ही नगर में फलां स्थान पर शूकरी के उदर से जन्म लूंगी। अमुक-अमुक मेरी पहचान होगी। वहां मैं आपके प्रश्न का उत्तर दूंगी। कहकर सर्वज्ञप्रभा चली गई और निर्दिष्ट स्थान पर पहुंचते ही दो सांडों की भिड़ंत में फंसकर उस की मृत्यु हो गई। उसकी गोद में रहा हुआ पुत्र इन्द्रसेन उछलकर एक व्यक्ति की गोद में जा पड़ा और उसकी प्राण रक्षा हो गई। पूरी घटना जानकर राजा की जिज्ञासा सर्वज्ञप्रभा की हंसी का रहस्य जानने को और अधिक सघन बन गई। उसने अपने विश्वस्त अनुचर को उस स्थान पर नियुक्त कर दिया जहां सर्वज्ञप्रभा ने जन्म लेने की बात कही थी। उधर शूकरी ने प्रसव किया तो राजा वहां पहुंचा और निर्दिष्ट पहचान वाले शूकरी - शावक से उसने *** 630 • जैन चरित्र कोश •••
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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