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एक रात्रि में श्रेयांस कुमार ने एक स्वप्न देखा-मानो वह काले पड़ते हुए सुमेरु पर्वत को अपने हाथों से अमृत घट से सींच रहा है। उसी रात में महाराज सोमप्रभ ने भी एक स्वप्न देखा-एक दिव्य पुरुष शत्रु सेना द्वारा हराया जा रहा है पर श्रेयांस कुमार के सहयोग से उसने शत्रु सेना को परास्त कर दिया। उसी रात्रि में नगर के एक प्रमुख श्रेष्ठी सुबुद्धि ने भी एक स्वप्न देखा-किरणों से रहित होते हुए सूर्य को श्रेयांस कुमार ने पुनः किरणों से संयुक्त बना दिया है। __दूसरे दिन श्रेयांस कुमार अपने महल के झरोखे में बैठे रात में देखे गए स्वप्न पर चिन्तन कर रहे थे। संयोग से भगवान ऋषभदेव भिक्षार्थ घूमते हुए उधर आए। श्रेयांस ने भगवान को देखा। चिन्तन जगा कि उसने पहले भी ऐसे वेश-विन्यास को कहीं देखा है। यों चिन्तन करते-करते उसे जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसे भिक्षा विधि का परिज्ञान मिल गया। उसने प्रभु से भिक्षा लेने की प्रार्थना की। प्रभु को शुद्ध इक्षुरस का दान देकर उसने प्रथम दातार होने का गौरव पाया। प्रभु ने वर्षीतप का पारणा किया। श्रेयांस कुमार का यश चहुं ओर फैल गया। सबके स्वप्न साकार बन गए। वह दिन अक्षय तृतीया के रूप में आज भी तप और दान के साथ मनाया जाता है। (ख) श्रेयांस (मुनि)
एक अति प्राचीन जैन मुनि। (ग) श्रेयांस (राजा)
विहरमान प्रभु श्री सीमन्धर स्वामी के जनक । (दखिए-सीमंधर स्वामी) श्रेयांसनाथ (तीर्थंकर)
प्रभु श्रेयांसनाथ वर्तमान चौबीसी के ग्यारहवें तीर्थंकर थे। सिंहपुर नरेश महाराज विष्णु प्रभु के पिता थे और उनकी महारानी विष्णुदेवी प्रभु की माता थीं। फाल्गुन कृष्णा द्वादशी के दिन प्रभु का जन्म हुआ। यौवन वय में अनेक राजकुमारियों का प्रभु के साथ विवाह हुआ। प्रभु ने पिता के बाद शासन सूत्र अपने हाथों में संभाला और सुशासन से जनता को प्रसन्न और समृद्ध किया। फाल्गुन कृष्णा त्रयोदशी के दिन प्रभु ने दीक्षा ली। ग्यारह मास की आत्मसाधना के पश्चात् प्रभु केवली बने। तीर्थ स्थापित कर तीर्थंकर पद पर अभिषिक्त हुए। असंख्य भव्यात्माओं के लिए परम पथ प्रशस्त करके प्रभु श्रावण वदी तृतीया को सम्मेद शिखर से निर्वाण को उपलब्ध हुए।
-त्रिषष्टि शलाका पुरुष चरित्र
... जैन चरित्र कोश ...
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