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कैसे अलग होता है। कहते हैं कि उस वृक्ष पर बैठकर एकाग्र चित्त से शवदाह संस्कार को देखते-देखते ही बालक रायचंद को जातिस्मरण ज्ञान हो गया।
अतीन्द्रिय ज्ञान से रायचंद भाई ने आत्मबोध प्राप्त किया। उन्होंने अपने पिछले कई भवों का दर्शन किया। इस प्रकार बाल्यकाल से ही रायचंद भाई अध्यात्म से जुड़ गए। उन्होंने योगियों जैसा जीवन जीया
और कई आध्यात्मिक रहस्यों से साक्षात्कार किया। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी श्रीमद् रायचंद भाई से विशेष रूप से प्रभावित थे और कई बार उनके दर्शन करने गए थे।
श्रीमद् रायचंद भाई ने कुछ वर्षों तक मुंबई में जवाहरात का व्यवसाय भी किया। व्यवसाय में सत्यनिष्ठा के साथ ही प्रेम और मानवता के उच्चतम आदर्श उन्होंने स्थापित किए।
श्रीमद् रायचंद भाई जन्मना गुजराती थे। उन्होंने गुजराती भाषा में काफी आध्यात्मिक साहित्य की रचना भी की। उन द्वारा रचित गद्य-पद्य रचनाएं उनके अनुभूत आध्यात्मिक ज्ञान के उत्कृष्ट उदाहरण हैं।
आयु के चतुर्थ दशक में प्रवेश करते ही श्रीमद् रायचंद भाई परलोक को प्रस्थान कर गए। (क) श्रीयक
महाराज नन्द के प्रधानमंत्री जैन श्रावक शकडाल का पुत्र तथा आर्य स्थूलभद्र का अनुज । परिवार की रक्षा के हित महामंत्री शकडाल ने मृत्यु पथ का आलिंगन किया तो नंद राजा को अपनी भूल ज्ञात हुई। उसने शकडाल के स्थान पर उसके पुत्रों को महामंत्री पद देना चाहा। स्थूलभद्र ने महामंत्री पद को ठुकरा कर दीक्षा धारण कर ली। तब यह दायित्व श्रीयक ने वहन किया। कुछ वर्षों तक उसने इस पद पर रहकर देश का संचालन किया।
उधर स्थूलभद्र की दीक्षा के बाद उसकी सातों बहनों ने भी दीक्षा ले ली। तब श्रीयक को भी वैराग्य हो गया। मंत्रीपद को त्यागकर उन्होंने भी आर्हती प्रव्रज्या अंगीकार कर ली।
कहते हैं कि श्रीयक का शरीर बहुत ही सुकोमल था। क्षुधा और तृषा उनसे सहन नहीं होती थी। सम्वत्सरी पर्व के अवसर पर उन्होंने उपवास किया। क्षुधा वेदनीय कर्म के उदय से उपवास में ही उनका स्वर्गवास हो गया। (देखिए-स्थूलभद्र) (ख) श्रीयक
नन्दिपुर नगर में रहने वाला एक राज-रसोइया। (देखिए-शौरिकदत्त) -विपाकसूत्र, प्र.श्रु., अ.8 श्रीवर्म राजा
(देखिए-महापद्म चक्रवर्ती) श्री विक्रम
एक परम जिनभक्त गंगवंशीय नृप। वह परम जिनभक्त नरेश कुशल राजनीतिज्ञ और वीर भी था। उसका राज्य सुदूर क्षेत्रों में फैला हुआ था। श्रेणिक राजा
तीर्थंकर महावीर कालीन मगध देश का एक धीर, वीर, न्यायी और प्रजावत्सल नरेश । अपने जीवन के उत्तरार्द्ध भाग में उसने जैन धर्म को अंगीकार किया। वह महावीर का अनन्य उपासक बना। जैन धर्म के ...606 .
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