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(घ) शीलवती
कांचनपुर नगर के रहने वाले क्षत्रिय किसान महिपाल की चार पुत्रवधुओं में से सबसे छोटी पुत्रवधू, एक आदर्श और सुशील सन्नारी। उसके पति का नाम शूरपाल था जो परम पुण्यात्मा, साहसी, स्वाभिमानी
और गुणानुरागी युवक था। किसी समय शीलवती अपनी तीनों जेठानियों के साथ खेत पर जा रही थी। सहसा तेज बरसात आ गई। उन चारों नारियों ने एक विशाल वटवृक्ष के नीचे आश्रय लिया। पीछे-पीछे महिपाल भी खेत पर जा रहा था, उसने भी वटवृक्ष के नीचे ही आश्रय लिया। पुत्रवधुएं यह नहीं जान पाईं कि उनके अतिरिक्त अन्य कोई व्यक्ति भी वटवृक्ष के नीचे आश्रय लिए हुए है। एकान्त पाकर चारों पुत्रवधुएं अपने-अपने मन की कामनाएं परस्पर कहने लगीं। प्रथम तीनों ने तो अपने लिए विभिन्न प्रकार के भोजनों की कामना व्यक्त की, पर शीलवती ने कहा, वह तो यह चाहती है कि वह उत्कृष्ट वस्त्राभूषण धारण करे और अपने सास-श्वसुर, ज्येष्ठ, ज्येष्ठानियों और पति को उनके मनोनुकूल भोजन परोसे तथा शेष बचे-खुचे को स्वयं खाकर उदरपोषण करे। ___महिपाल ने चारों पुत्रवधुओं के काम्य सुने। उसने विचार किया, प्रथम तीन पुत्रवधुओं की कामना तो वह पूर्ण कर सकता है, पर शीलवती तो आकाश में उड़ना चाहती है, प्रतीत होता है कि उसे खेत के काम पसन्द नहीं हैं, उसे तो वस्त्राभूषणों की भूख है जो एक कृषक गृह में कभी पूर्ण नहीं हो सकती है। शीलवती के कथ्य का तथ्य समझे बिना ही महिपाल ने घर में विचित्र व्यवस्था की परम्परा प्रारंभ कर दी। उसने अपनी पत्नी को आदेश दिया कि वह तीनों बड़ी बहुओं को उनके इच्छित भोजन प्रदान किया करे और छोटी बहू को रूखा-सूखा और अवशिष्ट अन्न दिया करे। शीलवती अवशिष्ट अन्न में भी सन्तुष्ट थी पर वह समझ चुकी थी कि उसकी वार्ता को सुन लिया गया है और उसके कहे का विपरीत अर्थ निकाला गया है।
एक दिन बड़ी पुत्रवधू ने अपनी सास से पूछा, माता! हमें प्रतिदिन यह उत्कृष्ट भोजन क्यों दिया जाता है? सास ने कहा, तुम्हारी कामना तुम्हारे श्वसुर ने सुन ली थी और उन्हीं के आदेश पर ऐसी व्यवस्था की गई है। सास के उत्तर पर तीनों बड़ी बहुएं तो प्रसन्न हुईं पर शीलवती उदास हो गई, क्योंकि उसके कथन का विपरीत अर्थ निकाला गया था। रात्रि में उसकी उदासी शूरपाल से छिपी न रह सकी। शीलवती पति को कुछ भी बताना नहीं चाहती थी। वह नहीं चाहती थी कि उसके पति के हृदय में परिवार के प्रति परायापन पैदा हो। पर शूरपाल ने शीलवती को उसकी उदासी का कारण बताने के लिए बाध्य कर दिया। विवश शीलवती ने पूरा घटनाक्रम सुना दिया। अपने पिता द्वारा अपनी पत्नी के उच्च भावों की ऐसी अवमानना देखकर शूरपाल का हृदय व्यथित हो गया। उसने सोचा, वह अपने श्रम के बल पर अपनी पत्नी के काम्य को अवश्य पूर्ण करेगा। उसने शीलवती को अपना मन्तव्य समझाया और अर्थार्जन के लिए बिना किसी को सूचित किए प्रदेश के लिए रवाना हो गया।
शूरपाल कई दिनों की यात्रा के बाद महाशाल नामक नगर में पहुंचा। वह श्रान्त था। विश्राम के लिए एक उद्यान में एक आम्र वृक्ष के नीचे लेटकर सो गया। उस नगर का राजा निःसंतान अवस्था में ही कालधर्म को प्राप्त हो गया था। नए राजा के चयन के लिए तत्युगीन प्रथानुसार पांच दिव्य छोड़े गए थे। पंचदिव्यों ने शूरपाल का चयन किया। शूरपाल महाशाल नगर का राजा बन गया।
उधर शूरपाल के चले जाने के कारण उसके परिवार में भारी चिन्ता हुई। खोज-खबर की गई। पर उसे खोजा न जा सका। शूरपाल के चले जाने से उस घर से लक्ष्मी भी रूठ गई। कहते हैं कि पुण्यवान के साथ ही पुण्य भी विदा हो जाता है। अनावृष्टि के कारण खेती सूख गई। महिपाल का परिवार भूखों मरने लगा। ... जैन चरित्र कोश ...
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