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भगवान महावीर से कही। भगवान ने कहा, द्वीप और समुद्र सात ही नहीं हैं, बल्कि असंख्यात हैं। शिवराज ने अपने अपूर्ण ज्ञान में सात द्वीप-समुद्रों ही को देखा है, इसीलिए वह ऐसी बात कहते हैं।
भगवान की इस बात को अनेक लोगों ने सुना। कान दर कान यह चर्चा शिव-राजर्षि तक भी पहुंची। वह स्वयं चलकर भगवान महावीर के पास आया। उसने प्रभु से संवाद किया जिससे उसका विभंगज्ञान अवधिज्ञान में रूपायित हो गया। इतना ही नहीं उसने भगवान का शिष्यत्व ग्रहण कर लिया और निरतिचार संयम का पालन कर मोक्ष में गया।
-भगवती सूत्र 11/9 शिवशर्म सूरि (आचार्य)
एक विद्वान जैन आचार्य। 'कम्मपयडि' और 'कर्मग्रन्थ' ये दो उन द्वारा रचे गए उत्कृष्ट ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों की रचना पूर्वो के ज्ञान के आधार पर की गई। बाद के कई विद्वान मुनियों-आचार्यों ने इन ग्रन्थों पर भाष्य, चूर्णि और टीकाग्रन्थों की भी रचना की।
आचार्य शिवशर्म सूरि संभवतः वि.सं. तृतीय शताब्दी के आचार्य थे। (क) शिवा
सोलह सतियों में परिगणित महासती शिवा गणाध्यक्ष महाराज चेटक की कन्या और उज्जयिनीपति महाराज चण्डप्रद्योत की रानी थी। वह अनिंद्य सुन्दरी तथा परमपतिव्रता सन्नारी थी। चण्डप्रद्योत का विश्वस्त प्रधानमंत्री किसी समय शिवा के रूप पर आसक्त बन बैठा। रनिवास में उसका अव्याहत प्रवेश तो था ही। सो एक दिन उसने अपने कुत्सित मनोभाव शिवा के समक्ष प्रगट कर दिए। 'प्राण जाएं पर प्रण न जाए' आदर्श की उद्गायिका शिवा सिंहनी बनकर उस पर दहाड़ उठी। उसे वह सीख दी कि उसे प्राणों के लाले पड़ गए। वह घर जाकर भयकातर हो रुग्ण हो गया। उसके समक्ष मृत्यु ताण्डव कर रही थी। महाराज को सूचना मिली तो वे अपनी रानी शिवा के साथ भूदेव की कुशलक्षेम जानने के लिए उसके घर पहुंचे। भूदेव अपनी भूल पहचान चुका था। वह शिवा के कदमों पर नतमस्तक हो गया। हृदय से उभरे पश्चात्ताप से रानी आर्द्र बन गई। उसने उसे मौन क्षमा दे दी जिससे भूदेव स्वस्थ बन गया।
किसी समय उज्जयिनी उग्र अग्नि-ज्वालाओं से घिर गई। अग्नि को बुझाने के सर्व यल निष्फल हो . गए। उस क्षण शिवा ने अपने प्रासाद शिखर पर चढ़कर चहुं ओर जल छिटकते हुए कहा कि यदि उसने पूर्ण पातिव्रत्य का पालन किया है तो अग्नि शान्त हो जाए। देखते ही देखते अग्नि शान्त हो गई।
कालान्तर में उसने संयम धारण कर सिद्ध गति को प्राप्त किया। -आवश्यक नियुक्ति 1284 (ख) शिवा (आर्या)
शिवा आर्या का समग्र परिचय काली आर्या के समान है। विशेषता इतनी है कि शिवा आर्या का जन्म श्रावस्ती नगरी में हुआ था और कालधर्म को प्राप्त कर वह सौधर्मेन्द्र की अग्रमहिषी के रूप में जन्मी थी। (देखिए-काली आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 9, अ.2 (ग) शिवा देवी
बाईसवें तीर्थंकर भगवान श्री अरिष्टनेमि की माता। सोरियपुर नृप महाराज समुद्रविजय की पटरानी। शिवानन्दा
आनन्द श्रावक की अर्धांगिनी और एक बारहव्रती श्राविका। ...जैन चरित्र कोश...
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