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शान्त्याचार्य (शान्ति आचार्य) ___“वादि वेताल" उपनाम से जैन इतिहास में विख्यात शान्त्याचार्य पाटण के उपाश्रय में रहते थे। उनके गुरु का नाम विजयसिंह सूरि था।
गुजरात प्रदेश के अन्तर्गत उन्नतायु नामक ग्राम में शान्त्याचार्य का जन्म श्रेष्ठी कुल में हुआ। उनकी माता का नाम धनश्री और पिता का नाम धनदेव था। शान्त्याचार्य का जन्मना नाम भीम था। भीम का शारीरिक सौन्दर्य प्रभावशाली था। आचार्य विजयसिंह सूरि एक बार उन्नतायु ग्राम में पधारे। उनकी दृष्टि बालक भीम पर पड़ी। लक्षण विज्ञान के विज्ञाता आचार्य श्री ने बालक भीम में उत्कृष्ट लक्षण देखे। श्रेष्ठी धनदेव से उन्होंने भीम की याचना की। श्रेष्ठी ने अपना पुत्र आचार्य श्री को अर्पित कर दिया। आचार्य श्री के सान्निध्य में भीम ने अध्ययन किया और उत्कृष्ट विद्या के निधान बन गए। दीक्षा के बाद उनका नाम शान्ति रखा गया। बाद में वे आचार्य पदारूढ़ हुए। उनमें वाद कला का गुण विशेष रूप से विकासमान हआ। उन्होंने अपने समय के कई विद्वानों को वाद के क्षेत्र में पराभत किया। उससे पाटण नरेश भीम शान्त्याचार्य का भक्त बन गया। धारा नगरी के राजा भोज विद्वानों का विशेष सम्मान करते थे। उन्होंने शान्त्याचार्य को अपने दरबार में आमंत्रित किया। धारा के दरबार में शान्त्याचार्य ने कई दिग्गज विद्वानों को शास्त्रार्थ में पराजित किया। राजा भोज शान्त्याचार्य की वादकला से चमत्कृत बन गए। उन्होंने उनको 'वादि वेताल' के पद से सम्मानित किया।
शान्त्याचार्य का एक टीका ग्रन्थ उपलब्ध है-पाइयटीका। यह एक उत्कृष्ट ग्रन्थ है।
वीर नि. की सोलहवीं शताब्दी में (1566) ज्येष्ठ शुक्ला नवमी के दिन 25 दिन के अनशन के साथ गिरनार पर्वत पर शान्त्याचार्य का स्वर्गवास हुआ।
-प्रभावक चरित्र शाम्ब कुमार वासुदेव श्रीकृष्ण और जाम्बवती के पुत्र। शेष परिचय जालिकुमार के समान है।
-अन्तगडसूत्र वर्ग 4, अध्ययन 7 शाकटायन (आचार्य)
विक्रम की नवमी सदी के यापनीय परम्परा के एक विद्वान जैन आचार्य। उनकी गणना आठ वैयाकरणों में पांचवें स्थान पर की गई है। उन द्वारा रचित 'शब्दानुशासन' नामक व्याकरण ग्रन्थ कई शताब्दियों तक भारत का सर्वाधिक लोकप्रिय व्याकरण ग्रन्थ रहा।
शब्दानुशासन के अतिरिक्त आचार्य शाकटायन के 3 अन्य ग्रन्थ उपलब्ध हैं -(1) शब्दानुशासन की स्वोपज्ञ अमोघवृत्ति, (2) स्त्रीमुक्ति प्रकरण, (3) केवली भुक्ति प्रकरण।
आचार्य शाकटायन अपरनाम 'पाल्यकीर्ति' से भी विश्रुत हैं। 'सकल ज्ञान साम्राज्य सम्राट्' के रूप में शाकटायन की सकल भारतवर्ष में प्रसिद्धि हुई थी। शाल
__ पृष्ठचंपा नगरी का राजा। जब भगवान महावीर पृष्ठचम्पा नगरी में पधारे तो शाल ने भगवान का प्रवचन सुना और अपने भानजे गागली को राजपद सौंपकर वह अपने अनुज महाशाल के साथ प्रव्रजित हो गया। दोनों भाई विशुद्ध संयम की आराधना करके मोक्ष में गए। ... 580 ..
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