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राजा सुरांगद पुत्र को राजपद देकर प्रव्रजित हो गया ।
वीरांगद ने सुदीर्घकाल तक दो-दो साम्राज्यों का कुशल संचालन किया। अंतिम अवस्था में मुनि दीक्षा धारण कर और निरतिचार चारित्र पर्याय पालकर वह मोक्ष में गया ।
- पुहवीचंद चरियं
वृद्धवादी (आचार्य)
एक सुप्रसिद्ध वादकुशल जैन आचार्य । आचार्य वृद्धवादी का जीवन परिचय काफी रोचक है। वे ब्राह्मण कुल में पैदा हुए थे। उनका जन्मना नाम मुकुन्द था । वृद्धावस्था में मुकुन्द को वैराग्य हुआ और वे आचार्य स्कन्दिल के शिष्य बन गए। मुनि मुकुन्द में अध्ययन की तीव्र उत्कण्ठा थी । आचार्य देव से पाठ लेकर वे उच्च स्वर से प्रहर रात्रि बीतने के बाद भी उच्च घोष से स्वाध्याय करते रहते। इससे अन्य मुनियों को स्वाध्याय-शयनादि क्रियाओं में बाधा उत्पन्न होती । आचार्य श्री ने वस्तुस्थिति को समझकर मुनि मुकुन्द को आदेश दिया कि वे दिन में स्वाध्याय करें और रात्रि में ध्यानादि आभ्यंतर तपों की आराधना करें। गुर्वाज्ञा को शिरोधार्य कर मुकुन्द मुनि दिन भर उच्च घोष पूर्वक स्वाध्याय करते रहते। उन्हें स्वाध्याय में इस प्रकार संलग्न देखकर श्रावकों ने उनका उपहास उड़ाते हुए कहा, मूसल में पुष्प उगें तो ये विद्वान बनें। इस व्यंग्य ने मुनिवर मुकुन्द को निरुत्साहित नहीं किया बल्कि उन्होंने इसे एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। आचार्य श्री की आज्ञा लेकर उन्होंने इक्कीस दिन की विशेष तपाराधना द्वारा ब्राह्मी विद्या की साधना की । देवी ने प्रकट होकर मुनि को सर्वविद्या निष्णात होने का वरदान दिया ।
उसके बाद मुनि मुकुन्द अद्भुत विद्वान मुनि बनकर उभरे। उन्होंने नगर के चौराहे पर मूसल रोप कर विद्या प्रभाव से उसे पुष्पित बनाकर व्यंग्य करने वाले श्रावकों को समुचित उत्तर दिया।
मुकुन्द वादकला में विशेष निपुण बने। उस युग के धुरन्धर ब्राह्मण विद्वान सिद्धसेन को शास्त्रार्थ में परास्त कर उनको अपना शिष्य बनाया। इससे मुनि मुकुन्द - 'वृद्धवादी' इस गुणनिष्पन्न नाम से भारत-भर में विश्रुत हो गए। स्कन्दिलाचार्य ने वृद्धवादी को अपना उत्तराधिकार प्रदान किया।
आचार्य वृद्धवादी का समय वी. नि. की नौवीं शताब्दी का उत्तरार्द्ध सिद्ध होता है ।
वृषभदत्त
जैन धर्मानुरागी एक श्रावक । अमरपुर के नगर सेठ और प्रतिष्ठित व्यवसायी । ( देखिए-सुलस कुमार) वृषभदेव
- प्रभावक चरित्र
आदि तीर्थंकर ऋषभदेव के चरण में वृषभ का चिन्ह होने के कारण उन्हें उक्त नाम प्रदान किया गया। वृषभदेव ही उच्चारण सरलता के कारण 'ऋषभदेव' नाम से विशेष विश्रुत हुए ।
वैजयंती
छठे बलदेव आनन्द 'जननी ( देखिए- आनन्द बलदेव)
वैदर्भी
भोजकट नरेश रुक्मि की पुत्री जिसका लग्न श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न कुमार के साथ हुआ था। वैरिसिंह
अंगदेश की राजधानी पुष्पावती के राजा महीपतिराय का तेजस्वी पुत्र | वैरिसिंह जब युवा हुआ और ••• जैन चरित्र कोश
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