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जीकर ही समस्त पुण्यों को कृपणता के अर्पित कर मृत्यु को प्राप्त हुआ और दुर्गति में जा गिरा।
-धन्य चरित्र विश्वसेन
सोलहवें तीर्थंकर प्रभु शांतिनाथ के जनक और हस्तिनापुर नगर के राजा। (देखिए-शांतिनाथ तीर्थंकर) विष्णु समग्र परिचय गौतम वत् है। (देखिए-गौतम)
-अन्तगडसूत्र प्रथम वर्ग, दशम अध्ययन विष्णुकुमार मुनि
हस्तिनापुर नरेश महाराज पद्मोत्तर के पुत्र और नवम चक्रवती महापद्म के अग्रज । भगवान मुनिसुव्रत स्वामी के शासन काल में मुनि संघ पर एक अभूतपूर्व संकट उपस्थित हुआ तो उसका निराकरण इन्हीं मुनि ने किया था। (देखिए-महापद्म चक्रवती)
-त्रिषष्टि शलाका पुरुषचरित्र, पर्व 6 विष्णुदेवी ____ सिंहपुर नरेश महाराज विष्णु की रानी और ग्यारहवें तीर्थंकर प्रभु श्रेयांसनाथ की जननी। (देखिएश्रेयांसनाथ तीर्थंकर) विष्णु राजा
सिंहपुर के महाराज और ग्यारहवें अरिहंत प्रभु श्रेयांसनाथ के जनक। (देखिए-श्रेयांसनाथ तीर्थंकर) (क) वीर
तीर्थंकर महावीर को बाल्यावस्था में प्राप्त नाम जो एक देवता ने उनकी वीरता से अभिभूत बनकर उन्हें दिया था।
वीर का अर्थ है-निर्भय, बलवान, विजेता। महावीर को बाल्यकाल में ही इस नाम से पुकारा और पहचाना गया। इसके पीछे एक घटनाक्रम है। यथा-उस समय महावीर सात-आठ वर्षीय बालक थे। एक बार देवराज इन्द्र ने देवसभा में राजकुमार वर्धमान के बल, वीर्य और बुद्धि की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि बालक वर्धमान भले ही अल्पायु हैं, पर देव, दानव, गन्धर्व आदि कोई भी उनके बल को चुनौती नहीं दे सकता है, वे पूर्ण रूप से अभय और अजेय हैं। देवराज की प्रशंसा एक देव को अतिशयोक्तिपूर्ण प्रतीत हुई। वह वर्धमान के बल की परीक्षा लेने के लिए कुण्डलपुर नगर में आया। उसने देखा-वर्धमान अपने साथी बालकों के साथ वृक्ष पर चढ़ने-उतरने का खेल खेल रहे हैं। देव ने विशाल सर्प का रूप बनाया और वह सर्प रूप में वृक्ष के तने से लिपट गया। बालकों ने विकराल सर्प को वृक्ष के तने से लिपटा देखा तो भय से चिल्ला उठे और जिसे जिधर सूझा उधर ही भाग खड़ा हुआ। मित्रों को भयभीत देखकर वर्धमान ने वस्तुस्थिति को समझा। विकराल सर्प को देखकर भी उनके मन में भय का सूक्ष्म सा स्पंदन भी नहीं उभरा। निर्भय मन से वे आगे बढ़े। उन्होंने एक हाथ से सर्प का फन और दूसरे हाथ से पूंछ को पकड़ा। सर्प को उठाकर वे दूर जंगल में छोड़ आए। वर्धमान के इस अभय और निर्भय रूप को जिसने भी देखा, वही दंग रह गया। सभी के मुख से वर्धमान के लिए 'वीर' शब्द निकला। तभी से वर्धमान को 'वीर' नाम से पुकारा जाने लगा।
..जैन चरित्र कोश ...
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