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इतिहास में विदुर को एक स्वच्छ हृदय, निर्भीक और सत्यवादी पुरुष के रूप में स्थान प्राप्त हुआ है।
- जैन महाभारत
(ख) विदुर
प्राचीनकालीन एकान्तवाद का विद्वान ब्राह्मण । ( देखिए-रुद्रसूरि ) विद्यानन्द (आचार्य)
जैन परम्परा के विद्वान जैन आचार्यों की पंक्ति में आचार्य विद्यानन्द का स्थान काफी ऊपर है। वैदिक, बौद्ध और जैन - भारत की इन तीनों चिन्तन धाराओं के वे तलस्पर्शी अध्येता थे । उन द्वारा सृजित साहित्य में उनकी प्रखर प्रतिभा और अद्भुत विद्वत्ता का सहज दर्शन होता है। आचार्य विद्यानन्द ने अपने जीवन काल में नौ ग्रन्थों की रचना की। इनमें तीन टीका ग्रन्थ हैं और छह स्वतंत्र विषयों पर बृहद् रचनाएं हैं। आचार्य विद्यानन्द का गृहस्थ संबंधी परिचय अनुपलब्ध है।
विद्युत् (आर्या )
विद्युत् आर्या का सम्पूर्ण वृत्त काली आर्या के समान है । विशेष इतना है कि इनके पिता का नाम विद्युत् गाथापति और माता का नाम विद्युत् श्री था । (देखिए -काली आर्या
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., प्र.वर्ग, अध्ययन 4
विद्युत्गति
वैताढ्य पर्वत पर स्थित तिलकानामा नगरी का राजा । (देखिए - मरुभूति) विद्युता (आर्या )
विद्युता आर्या की सम्पूर्ण कथा इला आर्या की कथा के समान है । (देखिए - इला आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि. श्रु., तृ. वर्ग, अध्ययन 6
विद्युल्लता
देवनगर नामक नगर के प्रतिष्ठित व्यापरी श्रेष्ठी लक्ष्मीधर की पुत्री जिसका विवाह कनकपुर के श्रेष्ठी धर्म के पुत्र विद्युत्से से हुआ था। जिस दिन विद्युल्लता का विवाह हुआ, उसी रात्रि में उसके पति विद्युत्सेन का निधन हो गया। एक कन्या के लिए यह एक वज्रापात के समान घटना थी । पर विद्युल्लता बचपन से
धर्म के रंग में रंगी हुई थी। वह शीघ्र ही संभल गई। उसने अपने सास- श्वसुर को भी धैर्य बंधाया और उनको शोक के सागर से बाहर निकाला । वस्तुतः शूरसेन और उसकी पत्नी पहले से ही शंकित थे कि उनके पुत्र का निधन हो सकता है। विद्युत्सेन जब मातृगर्भ में आया तो कुलदेवी ने शूरसेन को दर्शन देकर बताया था कि उसका पुत्र अल्पायुषि होगा। साथ ही कुलदेवी ने यह भी बताया था कि यदि पुत्र को अपठित रखा गया अथवा उसे अविवाहित रखा गया तो वह दीर्घजीवी हो सकता है। सेठ-सेठानी ने अपने पुत्र को विद्यालय नहीं भेजा। पर विद्युत्सेन में पढ़ने की तीव्र जिज्ञासा थी । उसने माता-पिता से छिपकर पढ़ना शुरू कर दिया । वह इतना मेधावी था कि थोड़े ही समय में वह विद्यावान हो गया। परन्तु उसके विद्यावान होने को सेठ-सेठानी नहीं जान पाए, इसीलिए उन्होंने उसका विवाह विद्युल्लता के साथ सम्पन्न कर दिया।
सुहाग रात्रि में ही विद्युत्सेन का निधन हो गया। विद्युल्लता ने इस कष्ट को धैर्य से सहकर सास- श्वसुर की सेवा को अपना जीवन-व्रत बना लिया। सेवा से शेष समय में वह धर्मध्यान में लीन रहती। एक बार एक ••• जैन चरित्र कोश -
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