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वसुपाल
(देखिए-श्रीपाल) वसुपूज्य
अरिहंत वासुपूज्य के जनक । (देखिए-वासुपूज्य तीर्थंकर) (क) वसु ब्राह्मण
नवम गणधर अचलभ्राता के पिता। (ख) वसु ब्राह्मण
चम्पानिवासी एक ब्राह्मण। दान धर्म में उसकी श्रद्धा थी पर उसे पात्र-कुपात्र का भेद-ज्ञान नहीं था। ब्राह्मण को ही वह सुपात्र मानता था। उसी नगरी में धनदत्त नामक एक श्रावक रहता था। वसु की उससे मैत्री थी। धनदत्त सुपात्र दान करता था और वैसा करने के लिए वह वसु को भी प्रेरित करता था। परन्तु वसु अपनी हठ को छोड़ने को तैयार नहीं था। मृत्यु के उपरान्त वसु ब्राह्मण सिंचानक नामक हाथी बना और सुपात्र दान के फलस्वरूप धनदत्त महाराज श्रेणिक का नन्दीषेण नामक पुत्र हुआ। -उत्तरा. वृत्ति वसुभूति ___भगवान महावीर के प्रथम तीन गणधरों-इन्द्रभूति, अग्निभूति और वायुभूति के जनक । गोबर ग्राम के समृद्ध और प्रतिष्ठित ब्राह्मण। (क) वसुमती
कुणाला नगरी के समृद्ध ब्राह्मण की पुत्री। युवावस्था में वसुमती का विवाह सम्पन्न कुल में किया गया पर वसुमती का वैवाहिक जीवन सुखमय नहीं बन पाया। श्वसुर-गृह में उसे सभी सदस्यों से प्रताड़ना
और घृणा प्राप्त हुई। अंततः एक दिन पति ने उसे घर से निष्कासित कर दिया। वसुमती अपने पिता के घर आई। पिता ने कर्मदोष कहकर पुत्री को सान्त्वना दी। एक दिन देवधर नामक नैमित्तिज्ञ कुणाला नगरी में आया। ब्राह्मण ने उससे अपनी पुत्री के बारे में पूछा। नैमित्तिज्ञ ने निमित्त शास्त्र का उपयोग लगाया और बताया, वसुमती ने पूर्वजन्म में एक मुनि के मैले-कुचेले वस्त्रों और स्वेद-सने शरीर को देखकर घृणा की थी जिससे उसने निकाचित कर्मों का बन्ध बाधा। निकाचित कर्मों के निजीर्ण होने पर ही उसे श्वसुर-गृह मे सम्मान की प्राप्ति हो सकती है।
-कथा रत्नकोष-भाग1 (ख) वसुमति
चम्पानरेश दधिवाहन की पुत्री राजकुमारी चन्दनबाला का उपनाम वसुमति था। (दखिए-चन्दनबाला) (ग) वसुमति (आर्या) इनका समग्र परिचय कमला आर्या के समान है। (दखिए-कमला आया)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 5, अ. 14 वसुमित्रा (आर्या)
आर्या वसुमित्रा का जन्म कौशाम्बी नगरी में हुआ एवं मृत्यु के पश्चात् वह ईशानेन्द्र महाराज की पट्टमहिषी ..538 ...
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