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लगा। देवताओं ने उपस्थित होकर उसे मुनिवेश प्रदान किया। वरदत्त मुनि संयम का पालन करते हुए जनपदों में विचरण करने लगे। निरतिचार चारित्र की आराधना कर वरदत्त मुनि परमपद के अधिकारी बने।
- उपदेश माला गाथा-113 वरधनु
काम्पिल्य नगर के राजभक्त मंत्री धनदत्त का पुत्र और चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त के बाल्यकाल का मित्र। बाल्यावस्था में जब दीर्घराजा ब्रह्मदत्त के प्राणों का प्यासा बना हुआ था तब वरधनु ब्रह्मदत्त के साथ देहच्छायावत् रहा और उसके सुख-दुख का मित्र रहा। वराह
भगवान सुविधिनाथ के प्रमुख गणधर। वरुण
भगवान महावीर और उनके धर्म के प्रति अनन्य आस्था रखने वाला एक बारह व्रती श्रावक । वरुण वैशाली नरेश महाराज चेटक के नाग नामक रथिक का पुत्र था और वैशाली साम्राज्य की विशाल सेना का सेनापति था। सेनापति जैसे पद पर रहते हुए भी वह पूर्ण जागरूकता से श्रावक-धर्म की आराधना में रत रहता था। वह जितना महासमर्थ सेनापति था उतना ही महासमर्थ श्रावक-धर्म का आराधक भी था। एक बार जब वह बेले की तपस्या की आराधना कर रहा था तो महाराज चेटक ने उसे युद्ध में जाने के लिए कहा। वरुण का यह नियम था कि वह शत्रु पर प्रथम वार नही करता था। स्वयं पर प्रहार करने वाले पर ही वह प्रतिप्रहार / प्रत्याक्रमण करता था। महाराज के आदेश से वह कूणिक के विरुद्ध युद्ध में गया। कूणिक के सेनापति ने वरुण पर प्रहार किया। यह प्रहार इतना घातक था कि वरुण बुरी तरह घायल हो गया। पर उसने प्रत्याक्रमण में एक ही बाण से कूणिक के सेनापति को धराशायी कर दिया।
घायलावस्था में वरुण युद्धभूमि से दूर एकान्त में चला गया। वहां भूमि का परिमार्जन कर संलेखना-संथारे सहित देह-विसर्जित कर देवलोक में गया। वहां से महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा।
-भगवती सूत्र 5/9 वरुण देवी
वत्स देश के तुंगिक नगर निवासी ब्रह्मदत्त की पत्नी और भगवान महावीर के दसवें गणधर मेतार्य की जननी।
-आवश्यक चूर्णि वरुणा
पोतनपुर नगर के पुरोहित कमठ की अर्धांगिनी। (देखिए-मरुभूति) वर्धमान
तीर्थंकर महावीर का जन्मना नाम वर्धमान है। महावीर का जीव जब माता तृषला की कुक्षी में अवतरित हुआ, तभी से क्षत्रियकुण्डपुर राज्य में सर्वतोभावेन समृद्धि का विस्तार होने लगा। राजकोष अक्षय बन गए, सैन्यवृद्धि हुई, महाराजा सिद्धार्थ का सुयश विस्तृत हुआ, खेत-खलिहानों में अपूर्व कृषि हुई, धन-धान्य, राज-पाट, यश-कीर्ति आदि में विशेष वृद्धि हुई। इस वृद्धि समृद्धि का कारण गर्भस्थ जीव के पुण्य को माना गया। शिशु के नामकरण के अवसर पर महाराज सिद्धार्थ ने उक्त तथ्य का उल्लेख करते हुए अपने पुत्र का नाम वर्धमान रखा। ... जैन चरित्र कोश...
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