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पुत्र उत्पन्न होने पर मेघ - दर्शन के दोहद से संसूचित उसका नाम मेघकुमार रखा गया । यौवन में आठ राजकन्याओं के साथ उसका पाणिग्रहण कराया गया। एक बार भगवान महावीर राजगृह पधारे। भगवान का उपदेश सुनकर मेघकुमार विरक्त बन गया। उसने माता-पिता से दीक्षा की अनुमति मांगी। श्रेणिक और धारिणी ने संयम की दुरूहता का दिग्दर्शन कराते हुए पुत्र को उसका निर्णय बदलने के लिए कहा । पर किसी भी विधि से वे मेघ का निश्चय न बदल सके। आखिर धारिणी ने उसे एक दिन का राज्य करने के लिए कहा। मेघ ने माता की प्रसन्नता के लिए इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। मेघ का राजतिलक किया गया। राजा बनते ही मेघ का सर्वप्रथम आदेश यही था कि उसकी दीक्षा की तैयारी की जाए। अन्ततः मेघ की दीक्षा पूरे ठाट-बाट से सम्पन्न की गई ।
महावीर के मुनि संघ की मर्यादा के अनुसार रात्रि में नवदीक्षित मेघ मुनि का आसन सब मुनियों के बाद द्वार के पास लगा । मुनियों के आवागमन से और पादस्पर्श से मेघमुनि को पूरी रात नींद नहीं आई । उसका मन खिन्नता से भर गया। उसने सोचा, जो मुनि मेरा इतना सम्मान करते थे साधु-जीवन में प्रवेश करते ही उन्होंने मुझे यों द्वार पर डाल दिया है। साधु बनकर मैंने ठीक नहीं किया। सुबह प्रभु से पूछकर अपने घर लौट जाऊंगा। सुबह होने पर मेघ महावीर के पास पहुंचा। महावीर तो सब जान रहे थे। उन्होंने उसे प्रतिबोधित करने के लिए उसका पूर्व भव सुनाया। उन्होंने कहा - मेघ ! पूर्वजन्म में तू यूथपति हाथी था। गर्मी से वन में सुलग जाने वाले दावानल से स्व-पर रक्षा के लिए तूने अपने यूथ के हाथियों के साथ मिलकर जंगल के मध्य में एक विशाल मैदान तैयार किया था। दावानल भड़क जाने पर पूरे जंगल के छोटे-बड़े पशु उस मैदान में एकत्रित हो गए। तुम भी वहां एक कोने में खड़े थे। पूरा मैदान छोटे-बड़े पशुओं से भर गया था। पैर रखने तक को स्थान शेष न था। तुमने शरीर खुजलाने के लिए अपना एक अग्रपद ऊपर को उठाया तो उस स्थान पर एक शशक आ बैठा। शशक की प्राण रक्षा के लिए तुमने अपना पैर ऊपर को लटकाए रखा। उसी अवस्था में तुम तीन दिन और तीन रात तक खड़े रहे। चौथे दिन दावानल शान्त हो जाने पर सभी पशु यत्र-तत्र चले गए। पर तुम वैसा न कर सके। तुमने अपना पैर नीचे करना चाहा तो तुम उसमें सफल न हुए। पैर अकड़ चुका था। तुम गिर पड़े और तुम्हारा आयुष्य पूर्ण हो गया। वहां से आयुष्य पूर्ण कर तुम श्रेणिक के पुत्र के रूप में उत्पन्न हुए हो 1
भगवान ने मेघ मुनि को उसका पूर्वभव बताकर उसे प्रतिबोध दिया। अपना पूर्वभव सुनकर मेघ मुनि को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने अपना पूर्वभव स्वयं देख लिया। संयम के प्रति उसमें उत्पन्न हुआ अनुत्साह मिट गया और शतगुणित उत्साह का ज्वार जाग उठा । उसने महावीर के चरणों पर मस्तक रखकर कहा - प्रभु ! ईर्या शोधन के लिए अपने दो नेत्रों के अतिरिक्त आज से मेरा पूरा शरीर मुनियों की सेवा और संयम के लिए अर्पित है। संयम और सेवा में अपना समग्र जीवन अर्पित कर मेघ मुनि आयुष्य पूर्ण कर सर्वार्थसिद्ध विमान में गया। वहां से महाविदेह में जन्म लेकर वह सिद्ध होगा । - ज्ञाताधर्मकथा, अध्ययन 1 मेघ गाथापति
राजगृह के धनी गाथापति । मेघ गाथापति भगवान महावीर के पास प्रव्रजित होकर विपुलाचल से सिद्ध हुए । - अन्तगड सूत्र वर्ग 6, अध्ययन 14
मेघमाली
एक भवनपति देव । (देखिए - पार्श्वनाथ तीर्थंकर)
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