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के झरोखे से उन्होंने राजमार्ग पर जाते एक मुनि को देखा। मुनि की शान्त-प्रशान्त मुद्रा उनके हृदय पर अंकित हो गई। चिन्तन जगा कि ऐसे वेश-विन्यास को मैंने पहले भी कहीं देखा है, पर कहां देखा है ? सोचते-सोचते उन्हें जातिस्मरण ज्ञान हो गया। अपने ज्ञान में उन्हें स्पष्ट दिखाई देने लगा कि पूर्वभव में वे मुनि थे। एकाएक उनका हृदय विरक्ति से भर गया। भोग उन्हें दुख के मूल तथा योग सुख का मूल दिखाई देने लगा। उसी क्षण वे अपने माता-पिता के पास पहुंचे और दीक्षा की अनुमति मांगने लगे। ___ मृगापुत्र की बात से माता-पिता सन्न रह गए। उन्होंने संयम की दुरूहता, क्लिष्टता, उपसर्गों, परीषहों आदि के तर्क उपस्थित कर पुत्र को रोकना चाहा। पर मृगापुत्र ने नरकादि की भयंकर यातनाओं का दिग्दर्शन प्रस्तुत कर माता-पिता के तर्कों को निरस्त कर दिया। साथ ही उसने कहा कि वे यदि उनके पुत्र को वस्तुतः सुखी देखना चाहते हैं तो उसे संयम लेने की अनुमति दे दें। ___ पुत्र और माता व पिता के मध्य लम्बा संवाद चला। आखिर माता-पिता को लगा कि उनके पुत्र का सच्चा सुख संयम में ही है। उन्होंने उसे अनुमति दे दी।
मृगापुत्र मुनि बने। उत्कृष्ट संयम और तप की आराधना करके उन्होंने केवलज्ञान प्राप्त किया और मोक्ष गए।
-उत्तराध्ययन, अध्ययन 19 (क) मृगावती
वैशाली गणतंत्र के अध्यक्ष महाराज चेटक की पुत्री और कौशाम्बी नरेश महाराज शतानीक की परिणीता पत्नी। मृगावती एक परम-सुशीला नारी थी। जैन परम्परा में विख्यात सोलह महासतियों में उसकी भी गणना होती है। उसने अपने विवेक और साहस को कष्ट के समय में भी जीवित रखा जिसके परिणामस्वरूप वह अपने धर्म की रक्षा कर पाने में सफल हो सकी।
शतानीक एक कलाप्रेमी राजा था। उसने उज्जयिनी निवासी एक युवा कुशल चित्रकार से एक चित्रशाला बनवाई। वह चित्रकार इतना कुशल चितेरा था कि किसी भी स्त्री अथवा पुरुष के शरीर के एक अंग को देखकर ही उसका पूरा चित्र बना देता था। किसी समय गवाक्ष से उसने महारानी मृगावती के पैर के अंगूठे को देख लिया और उसी को आधार बनाकर उसने महारानी को चित्रित कर दिया। चित्रकार की तुलिका से एक बिन्दु चित्रित रानी की जंघा पर गिर गया। चित्रकार के पोंछने पर भी वह ज्यों का त्यों अंकित रहा तो चित्रकार को विश्वास हो गया कि रानी की जंघा पर अवश्य ही तिल होना चाहिए। उसने उसे यथावत् रहने दिया। राजा चित्रशाला देखने आया। अपनी रानी के हूबहू चित्र को देखकर राजा दंग रह गया। पर जंघा के तिल को देखकर वह शंकित और क्रोधित बन गया। उसने चित्रकार को मृत्युदण्ड दे दिया। चित्रकार सहम गया। आखिर बुद्धिमान मंत्री ने रहस्य का पता लगाया और चित्रकार को जीवनदान मिल गया। शतानीक ने चित्रकार के दाएं हाथ का अंगूठा कटवाकर उसे अपने देश से निकाल दिया। निरपराध चित्रकार तिलमिला उठा। उसमें प्रतिशोध की भावना प्रबल बन गई। उसने दाएं हाथ से चित्र बनाने का अभ्यास किया और मृगावती का एक अद्भुत चित्र बनाया। चित्र लेकर वह उज्जयिनी नरेश चण्डप्रद्योत के पास पहुंचा। उसने वह चित्र चण्डप्रद्योत को भेंट किया। चण्डप्रयोत मृगावती के अनुपम लावण्य पर मोहित हो गया। उसने शतानीक के पास अपना दूत भेजा और आदेश दिया कि मृगावती को उसके हवाले कर दे उसे वह अपनी पटरानी बनाएगा। दूत के मुख से चंडप्रद्योत का प्रस्ताव सुनकर शतानीक आग-बबूला बन गया। उसने दूत को अपमानित करके सभा से निकाल दिया। ___ कामान्ध चण्डप्रद्योत ने कौशाम्बी पर आक्रमण कर दिया। शतानीक बलशाली चण्डप्रयोत का सामना ... 456 ..
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