________________
देश-कालानुसार तीर्थंकर महावीर अन्यत्र विहार कर गए।
एक बार पौषधशाला में पौषधाराधना करते हुए युवराज महाचंद को यह शुभ भाव उत्पन्न हुए कि वे नगर और ग्राम धन्य हैं जहां तीर्थंकर महावीर विचरते हैं। भगवान मेरे नगर में पधारें तो मैं भी उनके दर्शन कर धन्य हो जाऊं और उनके श्री चरणों में प्रव्रज्या धारण कर आत्मकल्याण करूं।
भाव फल देते हैं। ग्रामानुग्राम विचरते हुए भगवान एक बार पुनः चम्पा नगरी में पधारे। युवराज महाचन्द का हृत्कमल खिल उठा। वह भगवान के श्री चरणों में दीक्षित होकर निर्वाण को प्राप्त हुआ।
-विपाक सूत्र, द्वि श्रु., अ.9 महात्मा गांधी
महात्मा गांधी भारतवर्ष के एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने भारतीयों के मन पर शासन किया। उन्होंने अपने जीवन में सदैव जागरूक रहकर सत्य की साधना की। असत्य और अन्याय के विरुद्ध वे आजीवन संघर्ष करते रहे। अहिंसा, सत्य, सर्वोदय, सेवा आदि के धर्म सिद्धांत उनके आत्मसिद्धान्त बने थे। उन्होंने
जेंड से वकालत की डिग्री प्राप्त की। उसके बाद वे भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन से जड़ गए। उन्होंने भारत की स्वतन्त्रता के लिए अहिंसात्मक आंदोलन चलाया। उनकी सच्चरित्रता और सत्यनिष्ठा के कारण पूरा देश उनका अनुगामी बन गया। उन्होंने निजी स्वार्थों का सर्वथा त्याग कर दिया था। देशहित और आध्यात्मिक उन्नति उनके जीवन के ध्रुव लक्ष्य थे। भारत की स्वतंत्रता के पश्चात् प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च पद उनके लिए प्रस्तावित किए गए, पर उन्होंने कोई भी पद स्वीकार नहीं किया। उनके उत्कृष्ट त्याग के लिए कृतज्ञ राष्ट्र ने उन्हें 'राष्ट्र पिता', 'बापू' और 'महात्मा' जैसे महनीय शब्दों से संबोधित किया।
गांधी जी का जन्म सं. 1925 भादों बदी द्वादशी तदनुसार 2 अक्तूबर 1869 के दिन पोरबंदर (गुजरात) में हुआ। उनके पिता का नाम मोहनदास और माता का नाम श्रीमती पुतलीबाई था। ये दोनों ही धर्मरुचि सम्पन्न और सत्यनिष्ठ जीवन के अनुगामी थे। ___ माता पुतलीबाई के गुरु जैन मुनि बेचर जी स्वामी थे। मोहनदास (गांधी जी) जब बैरिस्ट्री की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड जाने लगे तब माता पुतलीबाई उन्हें अपने गुरु के पास ले गई। बेचर जी स्वामी ने मोहनदास को मांस, मदिरा और पर-स्त्री संग से दूर रहने की प्रतिज्ञा प्रदान की। मोहनदास ने इन प्रतिज्ञाओं का जीवन-भर दृढ़ता से पालन किया। इन प्रतिज्ञाओं से ही गांधी जी सत्य के सोपानों पर ऊपर और ऊपर चढ़ते चले गए।
श्रीमद् रायचंद भाई को गांधी जी ने गुरु तुल्य पद दिया। रायचंद भाई से उन्होंने अनेक आध्यात्मिक शिक्षाएं प्राप्त की। गांधी जी ने अपनी आत्मकथा में लिखा है-'श्रीमद् रायचंद भाई ने अपने सजीव संपर्क से मेरे जीवन पर गहरी छाप छोड़ी।' स्पष्ट है कि गांधी जी के जीवन का आध्यात्मिक पक्ष जैन संस्कारों से अनुप्राणित था।
-सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा महादेवी
हस्तिनापुर नरेश सुदर्शन की अर्धांगिनी और प्रभु अरनाथ की जननी। -त्रिषिष्ट शलाका पुरुष चरित्र महानन्द कुमार
मालव देश की राजधानी अवन्ती नगरी के कोटीश्वर श्रेष्ठी धनदत्त का पुत्र, एक दृढ़धर्मी श्रावक। उसके एक पुत्र हुआ। पुत्र परिवार और परिजनों को अत्यन्त प्रिय था। किसी समय उस पुत्र को एक सर्प ने ... जैन चरित्र कोश ..
- 427 ...