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अंजू (आर्या)
इनका समग्र परिचय काली आर्या के समान है। विशेषता इतनी है कि इनका जन्म हस्तिनापुर नगर में हुआ था और मृत्यु के पश्चात् ये शक्रेन्द्र महाराज की पट्टमहिषी के रूप में जन्मी। (देखिए-काली आर्या)
-ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र, द्वि.श्रु., वर्ग 9, अ. 4 अंजूश्री
एक बार श्रमण भगवान महावीर स्वामी अपनी शिष्य मण्डली सहित वर्द्धमानपुर नगर में पधारे। षष्ठ तप के पारणक के लिए गौतम स्वामी नगर में गए। भिक्षा प्राप्त कर लौटते हुए उन्होंने एक रुग्ण स्त्री को देखा। उस स्त्री के शरीर का रक्त और मांस सूख चुका था। उसकी अस्थियां किट-किट ध्वनि कर रही थीं। अत्यंत कष्ट का अनुभव करते हुए उस स्त्री को देखकर गौतम स्वामी कर्मों के विपाक पर चिन्तन करने लगे। अपने स्थान पर पहुंचकर आहारादि से निवत्त हो गौतम स्वामी भगवान महावीर के सान्निध्य में आए
और वन्दन कर देखी गई उस स्त्री के बारे में जिज्ञासा प्रस्तुत की। भगवान महावीर ने उस स्त्री का पूर्वजन्मसम्बन्धी वृत्तान्त सुनाते हुए फरमाया
गौतम ! प्राचीन काल में इंद्रपुर नामक नगर में पृथ्वीश्री नाम की एक गणिका रहती थी। उसका रूप सुन्दर था और अनेक कलाओं में वह प्रवीण थी। अपने रूप और कलाओं के बल पर वह राजा से लेकर रंक तक का आकर्षण बनी हुई थी। विरक्तों और उदासीनों को भी वह विविध वशीकरणादि चूर्णों-मंत्रों के योग से अपने वश में कर लेती और मनुष्य सम्बन्धी कामभोगों के भोग के साथ-साथ उनके धन का भी अपहरण कर लेती थी। ___इस प्रकार सुदीर्घ काल तक पृथ्वीश्री कामभोगों के दलदल में आकण्ठ डूबी रही। वहां से काल-धर्म को प्राप्त करके वह छठी नरक में गई। 22 सागरोपम के प्रलम्ब काल तक नरक की दारुण वेदनाओं को भोग कर पृथ्वीश्री का जीव वर्द्धमानपुर नगर के धनदेव सार्थवाह की पत्नी प्रियंगु के गर्भ से पुत्री रूप में जन्मा, जहां उसका नाम अंजूश्री रखा गया। यौवनावस्था में अंजूश्री का रूप-लावण्य अतिशय रूप में वृद्धि को प्राप्त हुआ। उसका विवाह नगर नरेश विजयमित्र के साथ सम्पन्न हुआ।
कर्म किसी के सगे नहीं होते। उदय काल में वे राजा और रंक में भेद नहीं करते। अंजूश्री के भी पूर्वभविक पापकर्म उदय में आए और उसे योनिशूल रोग उत्पन्न हो गया। राजरानी होने के कारण उसके लिए वैद्यों और हकीमों की कमी नहीं थी। दूर-देशों तक के हजारों वैद्य भी प्रयास करके पराजय मान बैठे पर अंजूश्री को स्वस्थ न कर सके। ज्यों-ज्यों इलाज किए गए त्यों-त्यों व्याधि बढ़ती गई। आखिर राजा ने भी अंजूश्री को उपेक्षित छोड़ दिया। निरन्तर तीव्र वेदना और आहार-विहारादि के अभाव में अंजूश्री के शरीर का रक्त और मांस सुख गया। विलाप करते हुए वह इतस्ततः भटकने लगी।
भगवान महावीर स्वामी ने फरमाया-गौतम ! जिस स्त्री को तुमने देखा है, वह अंजूश्री ही है। पृथ्वीश्री के भव में उसने जिस अनार्य आचार-विचार से दुःसह कर्मों का बन्ध किया था, उन्हीं का फल वह भोग रही
गौतम स्वामी ने पूछा-भगवन् ! अंजूश्री का भविष्य कैसा होगा ?
भगवान ने फरमाया-गौतम ! यहां से कालधर्म को प्राप्त कर अंजूश्री नरक में जाएगी। वहां से पृथ्वीकायादि विभिन्न योनियों और नरकभूमियों में भटकने के बाद सर्वतोभद्र नगर में श्रेष्ठिपुत्र के रूप में
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