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अपना पाप छिपाना चाहा। प्रतापसेन का हृदय भुवनसुंदरी को दुश्चरित्रा मानने को तैयार नहीं था, पर अग्रज के वचनों को भी वह अप्रामाणिक नहीं मान सकता था। वह असमंजस की सी स्थिति में था।
भुवनसुंदरी योगी के रूप में चन्द्रपुरी पहुंची। उसने रोगियों के उपचार शुरू किए। अनेक असाध्य रोगियों को उसने स्वस्थ कर दिया। उसकी ख्याति शीघ्र ही दूर-दूर तक परिव्याप्त हो गई। उसके पास क्रमशः मदनपुरी का व्यापारी, और क्षितिपुर का राजा वीरसेन भी उपचार कराने पहुंचे। प्रतापसेन भी अपने अग्रज महाराज प्रद्युम्न की आंखों के उपचार के लिए योगी के पास पहुंचा। योगीरूपी भुवनसुंदरी पति को साक्षात् देखकर गद्गद बन गई। पर उसने अपने भावों पर अंकुश रखा। उसने मदनपुरी के व्यापारी और वीरसेन राजा को कहा कि वह उनका उपचार महाराज प्रद्युम्न की राजसभा में करेगा। तिथि सुनिश्चित की गई। सनिश्चित तिथि को योगी सभा में पहुंचा। मदनपरी के व्यापारी ने सर्वप्रथम अपने उपचार की प्रार्थना योगी से की। योगी ने कहा, सेठ! तुम्हारा रोग किसी पाप का परिणाम है। सर्वप्रथम उस पाप की आलोचना करो, उसके बाद ही उपचार संभव है। सेठ ने कल्पित आलोचना करनी चाही, पर भुवनसुंदरी ने उसे डांटते हुए सत्य आलोचना करने को कहा। आखिर सेठ ने सच उगल दिया। उसने कहा, भुवनसुंदरी नामक एक सती के शीलहरण के दुष्प्रयास के कारण वह कुष्ठ रोग से व्याधित हुआ है। राजा प्रद्युम्न और प्रतापसेन सहित सभी सभासद भुवनसुंदरी का नाम सुनकर चौंक गए। आखिर योगी ने सेठ का उपचार किया और पलक झपकते ही सेठ स्वर्णकाय बन गया।
तदनन्तर योगी रूपी भुवनसुंदरी ने क्रमशः राजा वीरसेन और राजा प्रद्युम्न से भी उनके पाप उगलवा कर उनके उपचार किए। प्रतापसेन अपनी पत्नी पर किए गए अत्याचारों की कथा सुनकर अचेत हो गया। योगी ने उपचार से प्रतापसेन को स्वस्थ किया और सान्त्वना दी कि भुवनसुंदरी सकुशल है और शीघ्र ही उसकी भेंट उससे होने वाली है। इन्द्रपुरी के नरेश और उसकी रानी ने भी आलोचना की कि उन्होंने अपनी पुत्री को बिना उसकी बात सुने घर से निकाल दिया। उनका पुत्र भी उनसे छिन गया। भुवनसुंदरी ने मधुकर को श्रेष्ठी गृह से बुलाकर अपने माता-पिता को अर्पित कर दिया।
आखिर प्रतापसेन की प्रार्थना पर योगी ने-योगीरूप का परित्याग किया। भुवनसुंदरी को देखकर समस्त सभासद गद्गद हो गए। राजा प्रद्युम्न, राजा वीरसेन, मदनपुरी का श्रेष्ठी और भुवनसुंदरी के माता-पिता सभी महासती से क्षमा मांगने लगे। पति-पत्नी का पुनर्मिलन हुआ। सत्य-शील और भुवनसुंदरी की यश प्रशस्तियों से दशदिक् गुंजायमान हो गईं। ___भुवनसुंदरी कई वर्षों तक संसार में रहकर अपने शील से आदर्श प्रस्तुत करती रही। अन्तिम अवस्था में संयम धारण कर उसने परम पद प्राप्त किया। (ख) भुवनसुंदरी
एक सुरूपा नटकन्या। (देखिए-आषाढ़मुनि) भुवनानंदा
एक पतिव्रता सन्नारी, जिसकी परिचय कथा दो भवों से जुड़ी है। वह इस प्रकार है
सुखवासीन नगर के राजोद्यान में राजा ने मुनियों के लिए एक उपाश्रय बनवाया था। उपाश्रय के निकट ही एक छोटा सा घर था, जिसमें उद्यान पालक माली रहता था। माली की पत्नी का नाम सलोनी था। उनके दो संतानें थीं-एक पुत्र और एक पुत्री। माली एक अन्य स्त्री में अनुरक्त हो गया। सलोनी ने यह #398 ...
- जैन चरित्र कोश ...