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अंक
अंक-ज्ञान ज्ञान-विज्ञान और अध्यात्म का मूल हेतु है। अंक की उत्पत्ति की कथा इस प्रकार है
प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव दीक्षा लेने से पूर्व अयोध्या नगरी के राजा थे। उनके भरत, बाहुबली आदि सौ पुत्र और ब्राह्मी व सुंदरी नामक दो पुत्रियां थीं। राजा ऋषभदेव ने जगत में कर्मयुग का सूत्रपात किया। उन्होंने जगत को यौगलिक युग से मुक्ति देकर असि, मसि, कृषि के आविष्कार द्वारा कर्म पथ पर बढ़ने की प्रेरणा दी। इस कार्य में उन्होंने अपने पुत्रों और पुत्रियों को भी सहयोगी बनाया। उसी क्रम में एक बार ऋषभदेव सिंहासन पर बैठे हुए थे। उनकी दोनों पुत्रियां ब्राह्मी और सुंदरी खेलते-खेलते उनके पास आई
और उनकी गोद में बैठ गई। दायीं गोद में ब्राह्मी और बायीं गोद में सुंदरी बैठी। ऋषभदेव ने ब्राह्मी की हथेली पर वर्ण लिखे. जिनसे शब्द. वाक्य और भाषा की उत्पत्ति हई। ब्राह्मी की हथेली से उत्पन्न होने कारण उसे 'ब्राह्मी लिपि' नामकरण प्राप्त हुआ। ___ बायीं गोद में बैठी हुई सुंदरी की हथेली पर ऋषभदेव ने एक-दो-तीन-चार आदि अंक लिखे। बायीं ओर बैठने के कारण वे अंक दाएं से बाएं पढ़े गए। अंक पठन की वही परंपरा आज तक चली आई है। इस प्रकार सुंदरी के माध्यम से ऋषभदेव ने अंक विद्या, गणित और विज्ञान का आविष्कार किया। सृष्टि में इस प्रकार अंकों की उत्पत्ति हुई।
-ऋषभ चरित्र अंगद
अंगद किष्किंधा नरेश सुग्रीव का पुत्र था। उसकी माता का नाम तारा था। उसका एक सहोदर था जिसका नाम जयानंद था। ___जैन रामायण के अनुसार वानरवंशी अंगद विविध विद्याओं में निष्णात, धीर, वीर और अजेय योद्धा
एक भक्त हृदय युवक भी था। हनुमान की तरह ही उसके हृदय में भी श्रीराम के प्रति सुदृढ़ श्रद्धा भाव था। सीता-खोज से लेकर लंका विजय तक के प्रत्येक अभियान में वह श्रीराम का अनुगामी बना रहा। राम-रावण युद्ध में उसने अपने पराक्रम से राक्षस-सेना को चकित कर दिया था। __ वैदिक रामायण के अनुसार युद्ध प्रारंभ होने से पूर्व श्रीराम ने उसे अपना दूत बनाकर रावण के पास
ना। अंगद ने विविध प्रकार के नीतियक्त वचनों से रावण को समझाने की कोशिश की। अपने बल के घमंड में रावण ने अंगद के नीति वचनों का उपहास उड़ाया। तब अंगद ने रावण की राज्यसभा में अपने पांव को भूमि पर जमाया। लंका का कोई भी वीर अंगद के पांव को उसके स्थान से हिला नहीं सका। 'अंगद का पैर' यह वाक्य किसी अडिग स्थिति के अर्थ रूप में आज रूढ़ हो गया है।
पिता के बाद अंगद किष्किंधा के सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने न्याय और नीतिपूर्वक शासन किया।
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