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(क) भद्रनंदी कुमार
ऋषभपुर नरेश महाराज धनावह का पुत्र, एक रूप-गुण सम्पन्न और भद्र परिणामी राजकुमार। एक बार भगवान महावीर ऋषभपुर नगर के बाह्य भाग में स्थित स्तूपकरण्डक उद्यान में पधारे। भद्रनन्दीकुमार प्रभु को वन्दन करने गया। राजकुमार के रूप और वैभव को देखकर गणधर गौतम स्वामी ने भगवान महावीर से प्रश्न किया कि भंते! भद्रनंदीकुमार ने ऐसे क्या पुण्य कर्म किए हैं, जिनके फलस्वरूप उसे ऐसा अनुपम रूप और वैभव प्राप्त हुआ है? भगवान महावीर ने समाधान दिया, गौतम! अपने पूर्वभव में भद्रनंदीकुमार महाविदेह क्षेत्र की पुण्डरीकिणी नगरी में विजय नामक कुमार था। एक बार विजय ने जिननाथ युगबाहु को चढ़ते भावों से आहार-दान दिया। उसी अतिपात्र-दान के फलस्वरूप भद्रनंदीकुमार को अनुपम रूप और वैभव की प्राप्ति हुई है। गौतम स्वामी ने प्रभु से पुनर्प्रश्न किया, भगवन् ! क्या भद्रनंदीकुमार दीक्षा लेगा? भगवान ने फरमाया, हां, गौतम! भद्रनंदीकुमार प्रव्रज्या धारण करेगा।
भटनंदीकमार ने कई वर्षों तक सांसारिक सखों का स्पर्श किया। पांच सौ कन्याओं के साथ उसका विवाह हुआ था। उसके पांच सौ ही महल थे। इस पर भी भद्रनंदीकुमार भोगों में डूबकर अपने आत्मपक्ष को भूला नहीं था। उसने प्रभु से श्रावकधर्म अंगीकार किया था और उसका वह प्राणपण से पालन करता था। कालान्तर में भगवान महावीर पुनः ऋषभपुर पधारे। प्रभु का उपदेश सुनकर भद्रनंदीकुमार प्रबुद्ध बन गया। दीक्षा धारण कर वह जप-तप में संलग्न हुआ और आयुष्य पूर्ण कर देवलोक में गया। चौदह भवों के पश्चात् भद्रनंदी का जीव मोक्ष प्राप्त करेगा।
-धर्मरत्न प्रकरण टीका, गाथा 21 (ख) भद्रनंदी कुमार
सुघोष नामक नगर के राजा अर्जुन और रानी तत्ववती का पुत्र, एक सकल गुणनिधान युवक। उसका विवाह श्रीदेवी प्रमुख पांच सौ राजकन्याओं के साथ किया गया।
एक बार सुघोष नगर के बाह्य भाग में स्थित देवरमण उद्यान में भगवान महावीर पधारे। जनता धर्मोपदेश सुनने के लिए उद्यान में गई। युवराज भद्रनंदी भी भगवान की सेवा में उपस्थित हुआ। भगवान का धर्मोपदेश सुनकर भद्रनंदी अतीव प्रभावित हुआ। उसने भगवान से श्रावक-धर्म अंगीकार किया और अपने महल को लौट गया। ___भद्रनंदी कुमार के भव्य रूप और देवतुल्य ऋद्धि को देखकर गौतम स्वामी ने भगवान से उसके पूर्वभव के सम्बन्ध में जिज्ञासा प्रस्तुत की। भगवान ने फरमाया
महाघोष नामक नगर में धर्मघोष नाम का एक गाथापति रहता था। एक बार उसके घर धर्मसिंह नामक मासोपवासी मुनि पधारे। महामुनि को देखकर धर्मघोष अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने बड़े भक्तिभाव से मुनि को शुद्ध आहार का दान दिया। उससे उसने महान पुण्य का संचय किया। यथासमय आयुष्य पूर्ण कर धर्मघोष गाथापति यहां पर भद्रनंदी कुमार के रूप में उत्पन्न हुआ है। ___ गौतम स्वामी के पुनर्प्रश्न पर भगवान ने फरमाया कि भविष्य में भद्रनंदी आहती प्रव्रज्या अंगीकार कर इसी भव में मोक्ष में जाएगा।
कालान्तर में भगवान महावीर अन्यत्र विहार कर गए।
एक बार भद्रनंदी कुमार पौषधशाला में पौषध की आराधना कर रहा था। सहसा उसे यह विचार उत्पन्न हुआ कि वे नगर और जनपद धन्य हैं, जहां भगवान महावीर धर्मोद्योत करते हुए विचरण करते हैं। ... जैन चरित्र कोश..
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