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भद्दा
(देखिए - सुधर्मा स्वामी)
भ
भद्र (बलदेव)
प्रवहमान अवसर्पिणी के तृतीय बलदेव । (देखिए-स्वयंभू वासुदेव)
भद्रकुमार
श्रावस्ती नगरी के राजा जितशत्रु का पुत्र । अत्यन्त सुकोमल होने से कुमार का नाम भद्रकुमार रखा गया था । यौवनावस्था में भद्रकुमार विरक्त होकर मुनि बन गया। अपनी दैहिक सुकोमलता की परीक्षा के लिए और कर्मों की विशेष निर्जरा के लिए गुर्वाज्ञा प्राप्त कर भद्रमुनि ने अनार्य देश में विचरण किया। वहां अनार्य लोगों ने मुनिवर भद्रकुमार को गुप्तचर मानकर अनेक प्रकार की शारीरिक यातनाएं दीं। मुनिवर को रस्सियों से बांधकर कंटीली घास से ढांप दिया गया। कंपायमान उपसर्गों को मुनिवर ने पूर्ण समता भाव से सहनकर कर्मों की विशेष निर्जरा की। बाद में मुनिवर को भद्र व्यक्ति जानकर अनार्य लोगों ने मुक्त कर दिया ।
उत्कृष्ट समता साधना को साधकर मुनि भद्रकुमार ने आत्मकल्याण किया । भद्रगुप्त (आचार्य)
अर्हत् परम्परा के एक प्रभावक आचार्य । वे दस पूर्वों के ज्ञाता और अपने समय के ज्योतिर्धर आचार्य थे। वे आर्यवज्र के विद्या - गुरु थे। आर्यरक्षित ने अनशन की स्थिति में उनकी विशेष उपासना की थी। आचार्य धर्म के बाद उनका आचार्य काल माना जाता है। तदनुसार वी. नि. 495 में वे आचार्य पद पर आरूढ़ हुए । वी.नि. 533 में उनका स्वर्गारोहण हुआ ।
युगप्रधान पट्टावली में आचार्य भद्रगुप्त का आचार्य काल 41 वर्ष का माना गया है।
- नन्दी सूत्र स्थविरावली
भद्र चष्टन
शक संवत् का अधिष्ठाता एक शक वंशज नृप। लम्बे समय तक भारत में रहने के कारण शकों का भारतीयकरण हो गया था। उन्होंने भारत की भाषा, रीति-रिवाज और धर्म को अपना लिया था ।
महाराज नहपान के दीक्षा ले लेने के पश्चात् उसके राज्य पर उसके सेनापति ने अधिकार कर लिया था। भद्रचष्टन उस सेनापति का ही पुत्र था। जैन धर्म से वह विशेष प्रभावित था । आगमोद्धारक आचार्य धरसेन के प्रति उसकी अटूट आस्था थी । आचार्य श्री के स्वर्गवास के बाद उनकी स्मृति में चष्टन ने एक शिलालेख लिखवाया था। इसी राजवंश की एक महिला ने जैन तीर्थ वैशाली की यात्रा भी की थी ।
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*** जैन चरित्र कोश •••