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दो वर्षों से अधिक समय तक दोनों राजकुमार नहीं लौटे तो राजा वज्रसेन और उसकी रानी सुग्रीवा अत्यधिक चिन्तित हुए। पिता और विमाता को चिन्ताग्रस्त देखकर बलवीर ने भाइयों की खोज और दिव्य वृक्ष के रहस्य को पाने के लिए घर से प्रस्थान किया। वह जंगल में पहुंचा। उसने आपद्ग्रस्त वृद्धा की शुश्रूषा की। बलवीर की शुश्रूषा और भक्ति-भावना देखकर वृद्धा गद्गद हो गई। वह वन देवी थी। उसने बलवीर को उसके भाइयों का पता तथा दिव्यवृक्ष की प्राप्ति का रहस्य बताया। साथ ही ठगों और हंसावली को परास्त करने की विधि भी बताई।
बलवीर आगे बढ़ा। ठगपल्ली में ठगों ने उसका स्वागत किया, पर ठगों की उसके समक्ष एक न चली। ठग ही ठगे गए। ठगों का धन लेकर बलबीर आगे बढ़ा और हंसावली नामक युवती को परास्त कर उससे पाणिग्रहण किया। तदनन्तर वनदेवी के बताए गए गुप्त सूत्रों के अनुसार और अपनी बुद्धि व शक्ति के बल पर बलवीर पाताल-लोक पहुंचा और दिव्य वृक्ष का रहस्य पा गया। चार अन्य बालाओं के साथ उसने पाणिग्रहण किया। लौटते हुए उसने हंसावली को भी अपने साथ ले लिया। हंसावली ने कहा, उसके दो विश्वस्त चर भी उसके साथ चलेंगे। बलवीर की स्वीकृति पर हंसावली ने अपने विश्वस्त दोनों चरों को बुलाया। धनवीर और जयवीर को देखकर बलवीर अति प्रसन्न हुआ। उसने भाइयों का स्वागत किया और उन्हें राजसी वस्त्र प्रदान किए। उसके बाद वह दल वसन्तपुर के लिए प्रस्थित हुआ।
___ मार्ग में धनवीर और जयवीर का बलवीर के प्रति सुप्त वैरभाव पुनः जाग्रत हो गया। दोनों भाइयों ने बलबीर के वध का निर्णय किया। उन्होंने चार अलग-अलग अवसरों पर बलवीर की हत्या के प्रयास किए। परन्तु चारों ही बार बलवीर पुण्ययोग से रक्षित रहा। उसने चारों ही बार भाइयों को क्षमा कर दिया। आखिर पांच पलियों और दोनों भाइयों के साथ बलवीर अपने नगर में पहुंचा। माता-पिता और नगरजनों ने बलवीर का स्वागत किया। बलवीर ने प्राप्त विद्याबल से दिव्यवृक्ष उत्पन्न कर राजा सहित सभी नागरिकों को चकित-हर्षित किया। धनवीर और जयवीर बलवीर के अति उदार व्यवहार पर गद्गद और अपनी दुष्टता पर लज्जित थे। आत्मग्लानि से वैराग्य का स्रोत फूटा और वे दीक्षा लेने को तत्पर हो गए। बलवीर को राजपद देकर राजा ने भी दीक्षा का संकल्प किया। सुग्रीवा और प्रियवंदा भी दीक्षित हुईं।
बलवीर ने सुदीर्घ काल तक शासन किया और जीवन के उत्तर पक्ष में अपने ज्येष्ठ पुत्र को राजगद्दी प्रदान कर अपनी पांचों रानियों के साथ उसने संयमपथ चुना और सद्गति प्राप्त की। (क) बलि
एक प्राचीन राजा। (देखिए-स्वयंभू वासुदेव) (ख) बलि
छठा प्रतिवासुदेव, जिसे पुरुषपुंडरीक वासुदेव ने एक कठिन युद्ध में परास्त किया था। बलिभद्र सूरि (आचार्य) ___ चैत्यवासी परम्परा के एक प्रभावक आचार्य । विक्रम की दसवीं सदी के कई राजा आचार्य बलिभद्र सूरि के भक्त थे। बलिभद्र सूरि के गुरु का नाम आचार्य यशोभद्र सूरि था। बलिभद्र सूरि उनके ज्येष्ठ शिष्य थे। गुरु की आज्ञा के बिना ही बलिभद्र ने कई मांत्रिक विद्याएं सिद्ध की । इससे गुरु ने बलिभद्र को संघ से बहिष्कृत कर दिया और लघु शिष्य शालिभद्र को अपना उत्तराधिकार 'आचार्य पद' प्रदान कर दिया।
बलिभद्र गिरि-कन्दराओं में रहकर तपाराधना करने लगे। एक बार चित्तौड़ के महाराणा अल्लट की ... जैन चरित्र कोश ...
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