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सेठ की प्रार्थना पर मुनिश्री ने फरमाया-पूर्वभव में बंधुदत्त शालग्रामवासिनी चन्द्रा नामक निर्धन और विधवा ग्वालिन का पुत्र था। चन्द्रा दूसरों के घरों में सेवा कार्य करती थी और बंधुदत्त, जिसका नाम सर्ग था, सम्पन्न लोगों के पशु चराने जंगल में जाता था। एक बार सर्ग काम से लौटा तो उसने पाया कि उसकी मां तब तक काम से नहीं लौटी थी। सर्ग भूखा था। मां लौटी तो सर्ग ने क्रोध से कहा, तुम्हें किसी ने शूली पर टांग दिया था जो इतनी देर से लौटी। इससे मां ने भी क्रोधित होकर कहा, तुम्हारी कलाई में मोच आ गई थी, जो छींके से भोजन उतारकर खा न सके।
मुनिश्री ने कहा, सेठ! चन्द्रा और सर्ग वर्तमान भव में बंधुमती और बंधुदत्त बने हैं। उन कठोर वचनों के परिणाम-स्वरूप ही बंधुदत्त को शूली के त्रास से साक्षात्कार करना पड़ा और चोर द्वारा बंधुमती की कलाई मरोड़ी गई।
साधारण से कठोर वचनों का परिणाम कितना भयानक हो सकता है, यह जानकर सभी लोग चकित बन गए।
सेठ रतिसार विरक्त बन गया और उसने प्रव्रज्या धारण कर ली। बंधुदत्त और बंधुमती ने श्रावक धर्म ग्रहण किया। उन्होंने कई वर्षों तक विशुद्ध श्रावकाचार का पालन किया। जीवन के उत्तरपक्ष में उन्होंने आर्हती प्रव्रज्या धारण कर पंचमहाव्रतात्मक चारित्र का पालन किया और स्वर्गगमन किया। आगे के भवों में वे मोक्ष प्राप्त करेंगे।
-उपदेश सप्ततिका, पत्र 130 (क्षेमराज मुनि विरचित) (ख) बंधुदत्त मुनि
प्राचीनकालीन एक वादकुशल श्रमण। (देखिए- रुद्रसूरि) (क) बंधुमती
ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती की एक रानी। (देखिए--ब्रह्मराजा) (ख) बंधुमती
राजगृह निवासी अर्जुनमाली की अर्धांगिनी। (देखिए--अर्जुनमाली) बंसाला
कनकवतीपुरी के महाराज मकरध्वज की पुत्री और पृथ्वीपुर नरेश जयसिंह की पुत्रवधू तथा राजकुमार मुकनसिंह की पत्नी। सीता और सावित्री के समान ही बंसाला का चरित्र महिमापूर्ण है। जैन पौराणिक साहित्य के अनुसार उसका संक्षिप्त कथानक निम्नोक्त है
पृथ्वीपुर नरेश महाराज जयसिंह को उनके विवाह के पैंतीस वर्ष पश्चात् जिस पुत्र की प्राप्ति हुई उसका नाम मुकनसिंह रखा गया। देश-विदेश के विद्वान ज्योतिषियों ने मिलकर नवजात राजकुमार की जन्मकुण्डली बनाई और उससे जो फलादेश प्राप्त हुआ, उसके अनुसार राजकुमार अल्पायु था। ज्योतिषियों ने पर्याप्त - मन्थन के पश्चात् स्पष्ट किया कि राजकुमार का आयुष्य छह मास का है। पुत्र को अल्पायु जानकर महाराज
उदास हो गए। उन्होंने ज्योतिषियों से पुनः फलादेश निकालने के लिए कहा। परन्तु दूसरी बार भी वही फलादेश निकला। तब एक वद्ध ज्योतिषी ने कहा, महाराज! राजकमार के दीर्घाय होने का एक उपाय है
और वह है उसका विवाह किसी ऐसी बाला से किया जाए, जो पतिव्रत धर्म का निर्वाह करे और अपने शिशु पति का लालन-पालन स्वयं करे। ... जैन चरित्र कोश ...
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