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की दृढ़धर्मिता ने उसके हृदय के कलुष को धो डाला। उसने पद्मावती से अपने दुःसाहस के लिए क्षमा मांगी और उसे अपनी धर्म बहन बना लिया। उसके बाद उसने पद्मावती को एक रूपपरावर्तिनी गुटिका दी और ससम्मान उसे उसके पति के पास पहुंचा दिया। __पद्मावती को सुरक्षित और अपने धर्म पर सुदृढ़ पाकर पद्मसिंह के हर्ष का पारावार न रहा। उनका पारस्परिक प्रेमभाव पूर्वापेक्षया और भी प्रगाढ़ हो गया। सुख के झूले पर बैठकर वे समय यापन कर रहे थे। किसी दिन परस्पर वार्ता करते हुए वे दोनों एक विषय पर भिन्न-मत हो गए। विषय था-घर पुरुष से चलता है या स्त्री से। पद्मसिंह गृहसंचालन में पुरुष को प्रधान कहता था और पद्मावती स्त्री को। सहज वार्तालाप थोड़ा भारी बन गया और पद्मसिंह ने मन में गांठ बांध ली कि वह पद्मावती के समक्ष घर में पुरुष की प्रधानता सिद्ध करेगा। कुछ समय बीतने पर पद्मसिंह ने अपनी चल-सम्पत्ति को गुप्त रूप से सुरक्षित कर दिया। उसने पद्मावती से बहाना बनाया और कहा कि उसे उसके देश संखात अचानक जाना पड़ गया है, वह शीघ्र ही लौट आएगा। पद्मावती ने साथ चलने का आग्रह किया, पर पद्मसिंह ने विविध तर्क प्रस्तुत करते हुए उसे वसंतपुर रहने को ही राजी कर लिया।
पद्मसिंह के जाने के बाद पद्मावती को पति द्वारा छोड़ा गया एक संदेश मिला, जिसमें उल्लेख था कि वह स्त्री को घर में प्रमुख तब मान सकता है, जब वह उसकी अनुपस्थिति में ये चार कार्य करेगी। (1) शालिहोत्र लक्षण के दो घोड़े मेरे लिए खरीद कर रखना (2) सुन्दर महल बनवाना (3) मेरे लिए एक राजसुता को विवाहित करके लाना और (4) मेरे लौटने तक एक पुत्र पैदा करके रखना। ___पति का उक्त संदेश पढ़कर पद्मावती बड़ी खिन्न हुई। वह बुद्धिमती तो थी ही, वह समझ गई कि
सके पति के हृदय में उसकी बात चभ गई है. उसी के परिणाम स्वरूप वे उससे दर चले गए हैं। पदमावती ने आर्तध्यान में समय-यापन करने को मूर्खता माना। उसने निश्चय किया कि वह अपने पति के असंभव प्रायः निर्देशों को इस विधि से पूर्ण करेगी कि उसका नारी धर्म भी सुरक्षित रहे और उसका काम्य भी सिद्ध हो जाए।
पद्मावती को ज्ञात हो गया कि घर में धन नहीं है। धन के बिना संसार का कोई भी कार्य पूरा नहीं हो पाता, फिर शालिहोत्र लक्षण के अश्व और महल निर्माण कैसे हो। आखिर पद्मावती ने अपने बुद्धिकौशल से किसी श्रेष्ठी से धन उधार लिया और महल निर्माण का कार्य शुरू करवा दिया। शालिहोत्र लक्षण के दो अश्व भी उसने खरीद दिए। परन्तु तृतीय और चतुर्थ कार्य क्रमशः कठिनतर और कठिनतम थे। पर पद्मावती का चिन्तन भिन्न था। वह सोचती थी, अपुरुषार्थी के लिए कण भी मण है और पुरुषार्थी के लिए मण भी कण तुल्य है। पुरुषार्थ, साहस और दृढ़ निश्चय के साथ उसने देशाटन का संकल्प किया। रूपपरवर्तिनी गटिका द्वारा उसने पुरुष वेश धारण किया। देशाटन करते हए उसने विद्यासाधना में एक विद्याधर की सहायता की। चक्रेश्वरी देवी से उसे चिन्तामणि रत्न की प्राप्ति हुई। आगे जाकर बंग देश के राजा की पुत्री विजयवती से उसने पाणिग्रहण किया। पुरुषवेशी पदमावती विजयवती को वसन्तपर ले आई और उसके समक्ष सम्पर्ण रहस्य अनावृत्त कर दिया। पद्मावती के साहस से विजयवती बहुत प्रभावित हुई। उसने उसे बहन का मान
न दिया और उसके चतर्थ कार्य को कैसे परा किया जा सकता है. उसकी रूपरेखा तैयार की। चिन्तामणि रत्न होने से पद्मावती के पास सब भांति समृद्धि थी। उसने जिस सेठ से धन उधार लिया था, वह लौटा दिया। फिर एक दिन विजयवती को घर का दायित्व प्रदान कर वह संखात के लिए चल दी। संखात पहुंचकर उसने एक ग्वालिन का वेश धरा और शीघ्र ही उस वेश में रहते हुए ही वह अपने पति ...जैन चरित्र कोश ...
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