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पर सेठ ने पुत्रमोह में छींटे लगे थोड़े से भोजन को थाली के एक कोने में किया और भोजन करता रहा। उसी क्षण वे मुनि आहार लेने सेठ के घर पधारे और उक्त दृश्य देखकर मुस्काए। मुनि की रहस्यमयी मुस्कान पर सेठ पुनः चौंक पड़ा। उसने मन ही मन अपने निश्चय को पुनः सुस्थिर किया कि संध्या समय मुनि से उनकी मुस्कान का कारण अवश्य ज्ञात करूंगा ।
भोजन के बाद सेठ ने कुछ देर विश्राम किया और उसके बाद अपनी दुकान पर चला गया। कुछ देर बाद एक बकरा वधिक से छूटकर सेठ की दुकान की सीढ़ियों पर आ खड़ा हुआ और करुण दृष्टि से सेठ को देखने लगा । तब तक वधिक भी आ पहुंचा। सेठ ने वधिक से कहा, भले आदमी इस मूक प्राणी पर करुणा कर इसे छोड़ दे। वधिक बोला, सेठ! मैं तुम्हें कहूं कि दुकान करना छोड़ दो तो क्या तुम छोड़ दोगे? दुकान करना जैसे तुम्हारा व्यवसाय है, वैसे ही मांस-विक्रय मेरा व्यवसाय है । सेठ ने कहा, दया धर्म भी तो कोई चीज होती है । वधिक बोला, दया दिखाते हो तो पचास मुद्राएं गिन दो और बकरे को बचा लो ।
सेठ ने सोचा, यदि इस बकरे को मैं बचा भी लूं, तो क्या यह वधिक वध कर्म छोड़ देगा? इसे नहीं तो किसी अन्य बकरे को यह मारेगा ही। फिर मैं क्यों व्यर्थ ही पचास मुद्राएं व्यय करूं? ऐसा सोचकर सेठ ने बकरे का कान पकड़कर उसे वधिक को सौंप दिया। ठीक उसी क्षण वही मुनि उधर से गुजरे और मुस्करा कर अपने गन्तव्य पर बढ़ गए। नागदत्त के हृदय में हलचल मच गई। उसने बड़ी मुश्किल से संध्या की । संध्या समय वह मुनि के पास पहुंचा। कुछ श्रावकजन मुनि चरणों में बैठकर धर्माराधना कर रहे थे । नागदत्त प्रतीक्षा करने लगा कि वे लोग जाएं तो वह मुनि से उनकी मुस्कान का रहस्य पूछे ।
आखिर नागदत्त की प्रतीक्षा पूर्ण हुई । श्रावकजन अपने-अपने घरों को चले गए। मुनि को एकाकी पाकर सेठ ने उनको वन्दन किया और उनकी तीन बार की मुस्कान का रहस्य पूछा। मुनि ने कहा, सेठ ! जिस रहस्य को तुम पूछने को उत्सुक हो, क्या उसे सुनने की सामर्थ्य तुम्हारे अन्दर है? स्मरण रखो, उस रहस्य को सुनकर तुम्हारा स्वप्न-तुल्य सांसारिक सुख नष्ट हो जाएगा। क्या उसके लिए तुम्हारा मानस तैयार है ? सेठ ने कहा, महाराज! स्वप्न-सुख सुख होता ही कहां है? स्वप्न के सुख का टूट जाना ही श्रेष्ठ है। आप जो जानते हैं, वह अक्षरशः कहने की कृपा करें! सत्य को जाने बिना मुझे चैन न पड़ेगा !
सेठ की परिपक्व मानसिकता को देखकर मुनि ने कहा, तुम चित्रकारों को कह रहे थे- ये ऐसी चित्रकारी करें कि वे चित्र सात पीढ़ियों तक नए प्रतीत हों । परन्तु सच यह है कि तुम सात पीढ़ियों तक चित्रों की नवीनता की तो चिन्ता कर रहे हो, पर यह नहीं जानते हो कि तुम्हारा आयुष्य मात्र सात दिन का ही शेष है । सुना नागदत्त ने, और वह सहम गया। उसका कण्ठ सूख गया। मुनि ने उसे धैर्य दिया और कहा, सात दिन का समय तुम्हारे पास है। तुम इस अवधि में अपना भविष्य संवार सकते हो ।
सेठ को कुछ धैर्य हुआ और उसने मुनि से उनकी दूसरी मुस्कान का रहस्य पूछा। मुनि ने कहा, जिस पुत्र के मूत्र सने भोजन पर भी तुम्हें अप्रीति न हुई, वही पुत्र पूर्वभव में तुम्हारी पत्नी का प्रेमी था । तुमने ही उसका वध किया था। बड़ा होने पर वह अपनी मां का वध करेगा और तुम्हारे सप्तमंजिले भवन को बेचकर तुम्हारी सारी संपत्ति और प्रतिष्ठा को नष्ट कर देगा ।
नागदत्त की आंखों के समक्ष धरती घूम रही थी । साहस कर उसने मुनि की तृतीय मुस्कान का कारण पूछा। मुनि ने स्पष्ट किया, जिस बकरे का कान पकड़कर तुमने उसे वधिक के हवाले कर दिया और पचास मुद्राएं बचाकर प्रसन्नता का अनुभव किया, वह बकरा पूर्वभव में तुम्हारा पिता था ।
सुनकर नागदत्त अधीर हो गया। वह उसी क्षण वहां से भागकर वधिक के पास पहुंचा और सौ मुद्राएं ••• जैन चरित्र कोश -
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