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चन्द्रसेन युवराज था। किसी समय अचानक ही महाराज जयसेन का देहान्त हो गया। महामंत्री, सेनाध्यक्ष
और कोषाध्यक्ष इन तीनों ने षड्यंत्र रचकर तीनों राजकुमारों को परदेश रवाना कर दिया और पाथेय के रूप में विषमोदक उन्हें दे दिए। परन्तु पुण्य साथ हों तो स्वयं यमराज भी व्यक्ति का कुछ अहित नहीं कर सकता है। तीनों राजकुमारों के पुण्य कर्म प्रबल थे और उन्होंने अल्प कालावधि में ही तीन अलग-अलग देशों के साम्राज्य प्राप्त कर लिए और तीनों के विवाह उच्च राजकुलों में हुए। धर्मसेन जयानगरी का राजा बना और उसने कुटिल मंत्री, सेनापति और कोषाध्यक्ष को देशनिकाला दे दिया।
तीनों भाइयों ने सुदीर्घ काल तक न्याय और नीतिपूर्वक अपने-अपने राज्यों का संचालन किया। आयु के सांध्य पक्ष में तीनों भाइयों ने अपने-अपने पुत्रों को राजपद प्रदान कर अपनी-अपनी पलियों के साथ प्रव्रज्या धारण की और चारित्र का पालन कर सभी देवलोक के अधिकारी बने। (क) धारिणी
उज्जयिनी निवासी वणिक समुद्रदत्त की पत्नी, एक कामान्ध और अधम नारी। पति की मृत्यु के पश्चात् उसने अपने गृहसेवक यक्षदत्त से अनैतिक सम्बन्ध स्थापित कर लिए। पर पाप कितना ही छिप कर किया जाए, प्रकट होता ही है। नगरजन धारिणी के दुश्चरित्र से परिचित हो गए और उसकी निंदा करने लगे। धारिणी का पुत्र शिव भी अपनी माता के चरित्र को जान गया। वह खेदखिन्न हो गया। उसका चित्त अपनी मां के प्रति वितृष्णा से भर गया। पुत्र के चेहरे के भावों को देखकर धारिणी ताड़ गई कि उसका पुत्र उसके पाप-चरित्र को पहचान चुका है। वह मन ही मन सशंकित बन गई कि उसका ही पुत्र उसके भोगानंद में बाधा बन सकता है। निरंकुश भोगानंद भोगने के लिए उसने अपने प्रेमी यक्षदत्त के साथ मिलकर शिव को अपने मार्ग से हटाने का निश्चय कर लिया। धारिणी ने एक षड्यन्त्र रचा। पर शिव माता के षड्यन्त्र का भेद पा गया। वह यक्षदत्त से सावधान बन गया और इससे पूर्व कि यक्षदत्त धारिणी के षड्यन्त्र को मूर्त रूप दे पाता, शिव ने ही यक्षदत्त का वध कर दिया।
धारिणी यक्षदत्त के मरण को सह न सकी। वह कामान्ध नारी क्रोध से अन्धी बन गई और उसने तलवार के प्रहार से अपने ही पुत्र का वध कर डाला। शिव की धायमाता शिव की हत्या देख न सकी। उसने मूसल के प्रहार से धारिणी की हत्या कर दी। धारिणी की एक विश्वस्त दासी ने धाय की हत्या कर दी। ऐसे धारिणी की कामान्धता कई लोगों के विनाश का कारण बनी। काम से पराजित / पराभूत बनकर धारिणी अनन्त संसार में खो गई।
-प्रश्नोत्तर रत्नमाला वृत्ति/ गौतम पृच्छा ग्रन्थ / जैनकथा रत्न कोष, भाग 6 / बालावबोध गौतमकुलक (ख) धारिणी
अवन्ती की महारानी , जिसने पहले अपने शील की रक्षा के लिए प्रव्रज्या धारण की और बाद में विजयोन्मादी दो राजाओं को रक्तपात से विमुख बना कर अहिंसा और प्रेम की सरिता प्रवाहित की। उसकी परिचय-कथा महासती मदनरेखा की परिचय-कथा से पर्याप्त समानता लिए हुए है, जो निम्न प्रकार है
__ अवन्तीनरेश चण्डप्रद्योत के पुत्र का नाम पालक था। पालक के दो पुत्र हुए-अवंतीवर्द्धन और राष्ट्रवर्धन । अवंतीवर्द्धन को राज्य सौंपकर पालक प्रव्रजित हो गया। राष्ट्रवर्द्धन युवराज बना। उसकी रानी का नाम था धारिणी, जो परम-पतिपरायण सन्नारी थी। एक बार वसंतोत्सव के प्रसंग पर अवंतीवर्द्धन की दृष्टि अनुजवधू धारिणी पर पड़ी। वह उसके रूप पर मुग्ध हो गया। उसने विश्वस्त दूती के द्वारा अपना प्रणय-निवेदन ... 294
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