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कराया। योग्य वय में उसे उसका परिचय दिया। देवप्रसाद ने अपने पुण्य पराक्रम से शूरसेन को पराजित कर अपना राज्य प्राप्त कर लिया। ___श्रेष्ठी भद्र से देवप्रसाद को जिन संस्कार प्राप्त हुए थे। सो वह जैन श्रमणों का विशेष आदर-मान करता था। एक बार एक केवली मुनि कांपिल्यपुर के राजोद्यान में पधारे। राजा मुनि श्री के वन्दन के लिए चला। उसने राजमार्ग के किनारे एक रुग्ण व्यक्ति को देखा। उस व्यक्ति के शरीर में सोलह महारोग व्याप्त थे। उसके शरीर पर असंख्य मक्षिकाएं भिनभिना रही थीं। उसे देखकर राजा के हृदय में करुणा और प्रेम का भाव उत्पन्न हुआ। उसकी दुरावस्था पर चिन्तन करते हुए राजा केवलि-परिषद् में पहुंचा। मुनि-वन्दन कर प्रवचन श्रवण में लीन हो गया। प्रवचन के पश्चात् राजा ने केवली मुनि से उक्त रुग्ण पुरुष के बारे में पूछा कि उसने ऐसे क्या दुष्कर्म किए जिनके कारण उसे ऐसे असह्य कष्ट भोगने पड़ रहे हैं। केवली मुनि ने रुग्ण पुरुष का पूर्वभव सुनाया, जो इस प्रकार था
धनपुर नगर में सामदेव और वामदेव नामक दो सहोदर रहते थे। एक बार उस क्षेत्र में भीषण दुष्काल पड़ा। लोग भूख से मरने लगे। वामदेव ने सामदेव को प्रेरित किया कि वे दोनों शिकार से उदरपोषण करें। सामदेव ने वामदेव का प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया। वामदेव ने सामदेव के समक्ष विभिन्न युक्तियां प्रस्तुत की, उसे समझाया कि मनुष्य को जीवन रक्षा के लिए कभी-कभी उन्मार्ग का आश्रय भी लेना पड़ता है। जैसे-तैसे उसने सामदेव को शिकार के लिए राजी कर लिया। दोनों भाई शिकार के लिए जंगल में गए। वामदेव की प्रेरणा से सामदेव ने एक मृग पर बाण छोड़ा। पर उसका हाथ कांप गया। मृग भाग गया। बाण एक मुनि के निकट जाकर गिरा। सामदेव मुनि के पास गया। इस कल्पना से उसका हृदय कांप उठा कि
मनि को लग जाता तो अनर्थ हो जाता। वह मनि के चरणों में बैठ गया। मनि ने उसे धर्मोपदेश दिया. अहिंसा का मूल्य समझाया। धर्म का मर्म हृदयंगम कर सामदेव ने श्रावक धर्म अंगीकार कर लिया। वह श्रावक-धर्म का दृढ़तापूर्वक पालन करने लगा। वामदेव सामदेव को सदैव शिकार के लिए प्रेरित करता। सामदेव वामदेव को हिंसा के दुष्फल बताकर उसे हिंसा से विरत होने को कहता। पर दोनों अपने-अपने पथों पर सुदृढ़ रहे। ___आयुष्य पूर्ण कर सामदेव देवलोक में गया और वामदेव एक जंगली सूअर का शिकार बनकर काल करके नरक में गया। केवली मुनि ने देव प्रसाद को बताया, राजन्! पूर्वजन्म में तुम ही सामदेव थे और वह रुग्ण पुरुष पूर्वजन्म में वामदेव था। पूर्वजन्म में वह तुम्हारा सहोदर था, इसीलिए उसे देखकर तुम्हारे हृदय में उसके प्रति प्रेम भाव उमड़ा। __अपना पूर्वभव सुनकर देवप्रसाद को जातिस्मरण ज्ञान हो गया। उसने अपना पूर्वभव देखा और अहिंसा भगवती की आराधना का सुफल अनुभव किया। उसने चिन्तन किया, आंशिक हिंसा त्याग का फल देवपद और राजपद है तो पूर्ण रूप से हिंसा का त्याग तो निश्चित ही मोक्ष पद का साधक होगा। इस चिन्तन के साथ ही राजा ने मुनि दीक्षा धारण करने का संकल्प कर लिया। उसने अपने पुत्र को राजपद प्रदान कर आर्हती प्रव्रज्या धारण कर ली। अनेक वर्षों तक विशुद्ध चारित्र की आराधना की। आयुष्य पूर्ण कर वह देवलोक में गया। देवलोक से च्यव कर वह मनुष्य जन्म धारण करेगा और निरतिचार संयम की आराधना कर मोक्ष पद प्राप्त करेगा। -सुमतिनाथ चरित्र / जैन कथा रत्नकोष भाग 6 / बालावबोध, गौतमकुलक देवयश
चम्पापुर नगर के सेठ धनपाल के चार पुत्रों में से सबसे छोटा पुत्र । छोटा होने से तीनों अग्रजों और ...254 m
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