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था। मुनि के प्रश्न पर उसका श्रमण-द्वेष तीव्र हो गया। उसने मुनि को एक दुर्गम मार्ग पर जाने का इंगित कर दिया।
प्रचण्ड ताप और दुर्गम-ऊबड़-खाबड़ मार्ग। नुकीले पत्थरों और तीक्ष्ण कण्टकों से तपस्वी अणगार के पगतल बिंध गए। मुनि ने समझ लिया कि नागरिक ने द्वेषवश दुर्गम मार्ग बताया है। क्षण भर के लिए मुनि
मसार भल गए कि वे मनि हैं। नागरिकों पर रोषारुण बन गए और कत्संकल्प हए कि ऐसे नागरिकों को दण्ड मिलना ही चाहिए। एक स्थान पर स्थिर होकर मुनि दमसार 'उत्थान श्रुत' के उद्वेग उत्पन्न करने वाले पाठ का उच्चारण करने लगे। ___उद्वेग उत्पन्न करने वाले मंत्र शब्दों के प्रकट होते ही नगर भर में उद्वेग फैल गया। आबालवृद्ध नागरिक घबराकर इधर-उधर भागने लगे। ___ नगर में त्राहि-त्राहि मच गई। पर मुनि का मन अधिक देर तक नागरिकों की करुण चीत्कारें सुन सकने में असमर्थ हो गया। मुनि ने तत्क्षण 'उत्थान श्रुत' के उद्वेगशामक मंत्र का उच्चारण किया। क्षण भर में ही नागरिक स्वस्थ हो गए, ऐसे जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
पर इस घटनाक्रम से मुनि का मन पश्चात्ताप से भर गया। भगवान महावीर के वचन उनकी स्मृतियों में कौंध उठे-कषाय का शमन करो! कषाय के शमन पर ही कैवल्य ही निष्पत्ति निर्भर है। ____बिना आहार ग्रहण किए ही दमसार लौट आए। प्रभु के चरणों में पहुंचकर उन्होंने प्रायश्चित्त ग्रहण किया और उपशम की अप्रमत्त साधना में तल्लीन हो गए।
सातवें दिन का सूरज डूबने से पहले ही उपशम के साधक दमसार मुनि की आत्मा में केवलज्ञान का सूर्य उदय हो गया। दमसार मुनि जन्म-जरा-मरण के दैत्यों का दलन कर अजर-अमर हो गए। दशरथ
अयोध्या के परम प्रतापी राजा, श्रीराम, लक्ष्मणादि के जनक, और वचन के धनी एक रघुवंशी राजा। दशरथ के पिता का नाम अनरण्य और बडे भाई का नाम अनन्तरथ था। अनरण्य का एक मित्र था-माहिष्मती नरेश सहस्रांश। कहते हैं कि दशरथ जब एक माह के थे. तभी अनरण्य ने सहस्रांश के साथ मनि दीक्षा ले ली थी। अनन्तरथ ने भी अपने पिता का अनुगमन कर दीक्षा धारण कर ली।
दशरथ, जिनका एक अन्य नाम क्षीरकण्ठ भी था, युवा होने पर अयोध्या के राजा बने। उनकी चार रानियां थीं-कौशल्या, कैकेयी, सुमित्रा और सुप्रभा। इन चारों रानियों के चार पुत्र थे-राम, भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न। ____एक बार सत्यभूति नामक मुनि अयोध्या पधारे। उनका उपदेश सुनकर दशरथ विरक्त बन गए। भरत भी पिता के साथ ही दीक्षा लेने को तैयार हो गए। कैकेयी के लिए पति और पुत्र दोनों का एक साथ वियोग असह्य हो गया। उधर महाराज दशरथ राम को राजपद देकर दीक्षा लेना चाहते थे। कैकेयी ने भरत को अपनी आंखों के समक्ष रखने के लिए एक युक्ति निकाली। उसने पति के पास सुरक्षित अपने वचन को भरत के राजतिलक के रूप में मांग लिया। दशरथ के लिए राम और भरत में विभेद न था। दशरथ यह भी जानते थे कि राम के मन में राज्य का कोई आकर्षण नहीं है। इसलिए उन्होंने कैकेयी के कथन अनुसार भरत के राजतिलक की घोषणा कर दी। परन्तु भरत राजगद्दी पर बैठने के लिए तैयार न हुए। एक विचित्र स्थिति बन गई। श्रीराम ने उस विचित्र स्थिति के निदान के लिए वन-पथ स्वीकार कर लिया। श्रीराम को विश्वास ... जैन चरित्र कोश --
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