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(ख) दधिवाहन
दमदंत
महाभारतकालीन एक न्याय - नीति - निपुण नरेश । वह हस्तिशीर्ष नगर का राजा था । उसका तेज और बल अप्रतिम था । वह प्रतिवासुदेव जरासन्ध का अधीनस्थ नरेश था इसीलिए जरासंध के प्रति उसके हृदय में भक्ति तथा प्रीतिभाव था । युद्धों के प्रसंगों पर वह जरासंध के पक्ष से युद्ध किया करता था । जरासंध श्रीकृष्ण और कुरुवंश को अपना शत्रु मानता था । श्रीकृष्ण और कुरुवंशी भी जरासंध और उसके मित्र - नरेशों को अपना शत्रु मानते थे। इसी आधार पर दमदंत भी कुरुवंशियों के लिए एक शत्रु राजा था। एक बार जब दमदंत जरासंध से मिलने के लिए राजगृह नगर गया हुआ था तो कौरवों और पाण्डवों ने मिलकर हस्तिशीर्ष पर आक्रमण कर दिया और राजकोष लूट कर ले गए।
चम्पानगरी का राजा । (देखिए - सुदर्शन सेठ)
दमदंत को लौटने पर वस्तुस्थिति का परिज्ञान हुआ । उसने चतुरंगिणी सेना सजाकर हस्तिनापुर को चारों ओर से घेर लिया। युधिष्ठिर के आदेश पर नगरद्वार बन्द कर लिए गए। दमदंत पाण्डवों और कौरवों को निरन्तर ललकारता रहा, पर कौरव और पाण्डव उससे लड़ने का साहस नहीं संजो सके। कौरव और पाण्डव महाबली थे, पर उस प्रसंग में न्याय उनके पक्ष में नहीं था इसलिए दमदंत का सामना करने का साहस वे नहीं जुटा पाए। दमदंत कौरवकुल को गीदड़कुल कहकर अपने नगर लौट गया ।
कालान्तर में दमदंत राजपाट त्याग कर प्रव्रजित हो गए। उन्होंने समता की साधना में स्वयं को समग्रतः समर्पित कर दिया । विहारक्रम में मुनि दमदंत हस्तिनापुर पधारे और नगर के निकटस्थ वन में ध्यान-साधना में लीन हो गए। उधर कौरव - पाण्डव वन क्रीड़ा के लिए गए। युधिष्ठिर ने मुनि को कायोत्सर्ग मुद्रा में देखा । दमदंत को पहचान कर युधिष्ठिर का हृदय विशेष भक्ति भाव से पूर्ण हो गया। मुनि की स्तुति - वन्दना कर वे आगे बढ़ गए। भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव भी युधिष्ठिर की भांति ही मुनि को बहुमान देकर आगे बढ़ गए। उनके पीछे दुर्योधन अपने भाइयों के साथ उधर से गुजरा। मुनि दमदंत को पहचानकर दुर्योधन प्रतिशोध से भर उठा। उसने और उसके भाइयों ने मुनि पर पत्थर बरसाए। मुनि को घायल कर वे आगे बढ़ गए। मुनि युधिष्ठिर की स्तुति और दुर्योधन की प्रस्तरवर्षा, दोनों अवस्थाओं में समता भाव में लीन रहे ।
वन-विहार से लौटते हुए युधिष्ठिर ने मुनि को घायल अवस्था में देखा। उनका हृदय कंपित हो गया। दुर्योधन ने मुनि को घायल किया है, यह बात जानकर युधिष्ठिर ने दुर्योधन को प्रताड़ित किया और मुनि क्षमापना कर अपने नगर को चले गए।
समता- साधना से मुनिवर दमदंत परम गति के अधिकारी बने ।
- आवश्यक निर्युक्ति / आवश्यक बृहद् वृत्ति / ऋषिमण्डल प्रकरण वृत्ति
दमयंती
सोलह महासतियों में से एक। विदर्भ देश के कुंडिनपुर के महाराज भीम की रानी पुष्पवती की सुपुत्री । दमयन्ती रूप और गुणों में अद्वितीय थी। उसके पिता ने उसके लिए स्वयंवर का आयोजन किया। उसने अयोध्यापति महाराज नल के गले में वरमाला डालकर उसे पति रूप में चुना। महाराज नल एक नीतिज्ञ शासक और धर्मज्ञ व्यक्ति थे। पर उनमें एक दुर्गुण भी था । द्यूतक्रीड़ा उनका प्रिय शौक था। किसी समय वे अपने भाई कुबेर के साथ द्यूत खेलने लगे। दुर्दैववश वे द्यूत में अपना सर्वस्व हार गए। तय शर्त के अनुसार ••• जैन चरित्र कोश :
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