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झांझरिया मुनि
झांझरिया मुनिका वास्तविक नाम तो मुनि मदनब्रह्म था, पर एक घटना विशेष के कारण वे लोक में उक्त नाम से ख्यात हुए। मुनि मदनब्रह्म कौन थे और वे उक्त नाम से कैसे जाने गए, इसका विवरण इस प्रकार है
प्रतिष्ठानपुर नगर के राजा मकरध्वज के दो संतानें थीं, एक पुत्र - मदनब्रह्म, और दूसरी एक पुत्री - जयश्री । राजा ने जयश्री का विवाह कंचनपुर नरेश कीर्तिधर से किया और पुत्र मदनब्रह्म का विवाह बत्तीस कुमारियों से किया। एक बार एक मुनि का उपदेश श्रवण कर युवराज मदनब्रह्म विरक्त हो गया और उसने मुनिदीक्षा धारण कर ली । अल्पकाल में ही मुनि मदनब्रह्म आगमज्ञ बन गए और गुरु की आज्ञा से एकलविहार प्रतिमा को धारण कर एकाकी विचरण करने लगे। एक बार मुनि मदनब्रह्म त्रम्बावती नगरी पधारे। भिक्षार्थ नगर में गए। राजमहल के निकट ही एक गृहस्थ का घर था। गृहस्थ कई वर्षों से परदेस गया हुआ था । उस घर में उस गृहस्थ की पत्नी अकेली ही निवास करती थी। उस महिला ने युवा और तेजस्वी मुनि को देखा तो वह
मान्ध बन गई । भिक्षा के बहाने वह मुनि मदनब्रह्म को अपने घर ले गई और उसने मुनि के समक्ष अपना काम प्रस्ताव प्रस्तुत किया। मुनि ने युक्तियुक्त वचनों से महिला को सन्मार्ग दिखाने की चेष्टा की । पर महिला पर तो काम का भूत सवार था। उसने अनेक-अनेक उपायों से मुनि को रिझाने का प्रयास किया । पर मुनि अपने वज्रसंकल्प पर अडोल थे। इससे वह महिला खीझ उठी। उसने मुनि को सबक सिखाने का निश्चय कर लिया। प्रकटतः विनय प्रदर्शित करते हुए वह मुनि के चरणों से लिपट गई और अपने पैर की झांझर मुनि
पैर में बांध दी। मुनि उस महिला के पाश से मुक्त होकर जैसे ही उसके द्वार से बाहर निकले, महिला ने शोर मचाकर मुनि पर बलात्कार का आरोप लगा दिया। लोग एकत्रित हो गए और मुनि को मारने लगे । संयोग से नगरनरेश अजातशत्रु ने गवाक्ष से उस महिला का पूरा नाटक देख लिया था। राजा तत्क्षण वहां उपस्थित हुआ और सत्य का उद्घाटन कर मुनि के चरणों पर नत होकर क्षमा मांगने लगा। लोग भी आत्मग्लानि से भर गए और मुनि से क्षमा मांगने लगे। सभी ने मुनि की जयकार झांझरिया (पैर में झांझर बंधे होने से ) नाम से की। उस घटना के बाद मुनि मदनब्रह्म झांझरिया मुनि के नाम से सुख्यात हो गए। राजा ने उस महिला को अपने राज्य से निष्कासित कर दिया ।
एक बार झांझरिया मुनि कंचनपुर नगर पधारे। भिक्षा के लिए नगर में गए। उसी नगर में मुनि की संसारपक्षीय बहन जयश्री नगरनरेश से विवाहित हुई थी। मुनि भिक्षा के लिए टहल रहे थे, उधर जयश्री अपने पति राजा कीर्तिधर के साथ महल के गवाक्ष में बैठी चौपड़ खेल रही थी । सहसा राजपथ पर चल रहे मुनि पर उसकी दृष्टि पड़ी। वह भाई को पहचान नहीं पाई। यह सोचकर उसकी आंखों में आंसू आ गए कि उसका भाई भी कहीं ऐसे ही भिक्षा के लिए भ्रमण कर रहा होगा। रानी की आंखों में आंसू देखकर राजा भ्रमित हो गया। बिना कुछ कहे ही वह उठकर चला गया। उसने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि जैसे ही • जैन चरित्र कोश
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