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की प्रशंसा करने लगा। एक स्पष्टवादी पार्षद ने कहा, राजन् ! व्यक्ति का चातुर्य त्रियाचरित्र के समक्ष कुन्द पड़ जाता है। त्रिया ही चतुरों में चतुर है। आपका चातुर्य भी उसके समक्ष नगण्य है। राजा ने अपने चातुर्य को त्रियाचातुर्य पर इक्कीस सिद्ध करने के लिए अपनी नई रानी के लिए एक पातालमहल बनवाया। उसी में अपनी रानी को रखा। पातालमहल में ही अहर्निश रहने वाली रानी पातालसुंदरी के नाम से जानी जाती थी। पातालसुंदरी के लिए पातालमहल से बाहर जाना निषिद्ध था। आखिर पातालसुंदरी के उपपति ने अपने भवन से पातालमहल तक एक सुरंग खुदवाई और वह पातालसुंदरी से मिलने लगा। पातालसुंदरी का उपपति प्रदेशी सेठ हीरालाल था, जो राजा का भी विश्वास पात्र था। एक बार पातालसुंदरी ने अपने चातुर्य-दर्शन के लिए हीरालाल से कहकर राजा को उसके घर भोज पर बुलाया। पातालसुंदरी ने सुरंग मार्ग से जाकर राजा को अपने हाथों से भोजन परोसा। उसे देखकर राजा दंग रह गया। भोजन को छोड़कर वह शीघ्र ही पातालमहल पहुंचा, पर उससे पूर्व ही पातालसुंदरी सुरंग मार्ग से अपने स्थान पर पहुंच गई। राजा संतुष्ट हो गया। ___ अंततः पातालसुंदरी एक दिन अपने उपपति हीरालाल के साथ जहाज पर सवार हो उसके नगर के लिए रवाना हो गई। राजा हीरालाल को विदा देने समुद्र तट पर आया था। उसने पातालसुंदरी को जहाज पर सवार होते भी देखा था, पर उसने उसे भोजन परोसने वाली वही स्त्री माना जिसे देखकर पहले भी उसकी आंखें धोखा खा चुकी थी। राजा अपने महल में पहुंचा। पातालसुंदरी को खोजा पर वह नहीं मिली। बहुत खोजने पर सुरंग-द्वार अवश्य खोज लिया गया। त्रियाचरित्र देखकर राजा के चातुर्य और विद्वत्ता का घमण्ड चूर-चूर हो गया। उसे भोगों से विरक्ति हो गई। राजपाट का त्याग कर राजा जयवन्तसेन प्रव्रजित हो गया। उत्कृष्ट तपःसाधना और निरतिचार संयम का पालन कर राजर्षि ने केवलज्ञान प्राप्त किया और लाखों भव्य जीवों के लिए वे कल्याण का द्वार बने। ___पातालसुंदरी सेठ हीरालाल के साथ जहाज पर बैठकर रवाना हुई तो मार्ग में ही वह हीरालाल के सहोदर पन्नालाल पर आसक्त हो गई। पन्नालाल को भी अपनी ओर आकर्षित पाकर उसने छल-बल से हीरालाल को समुद्र में फैंक दिया। पातालसुंदरी के अप्रत्याशित व्यवहार से हीरालाल दंग रह गया। एक मगर की पीठ पर बैठकर वह तट पर लगा और पुण्ययोग से एक मुनि के दर्शन पाकर स्वयं भी मुनि बन गया। पातालसुंदरी द्वारा भाई को समुद्र में फैंक दिए जाने की घटना ने पन्नालाल के हृदय में पातालसुंदरी के प्रति घृणा को जन्म दे दिया। उसे विश्वास हो गया कि किसी अन्य पुरुष को पाकर वह उसे भी मार डालेगी। पन्नालाल भी विरक्त हो गया। जहाज तट पर लगा तो पन्नालाल को सहोदर हीरालाल के मुनि रूप में दर्शन हुए। वह भी भाई का अनुगामी बनकर चारित्र की आराधना में तन्मय हो गया।
पातालसुंदरी अपने निकृष्ट और पापपूर्ण चरित्र के कारण कई लोगों के वैराग्य का कारण बनी। अंततः उसका यौवन ढल गया और देह से कुष्ठ फूट पड़ा। गहन आर्तध्यान में डूबकर, आयुष्य पूर्ण कर वह नरक
में गई।
जयरथ
__ जयपुर नगर का न्यायप्रिय राजा। उसने अधेड़ावस्था में शृंगारमंजरी नामक एक युवती से विवाह किया जो अनन्य रूपवती थी। वह शरीर से तो सुन्दर थी पर मन से कुरूपा थी। उसने धनंजय नामक एक युवक से प्रणय सम्बन्ध स्थापित किए हुए थे। धनंजय युवा था और इसीलिए शृंगारमंजरी का उस पर सघन अनुराग भाव था। नगर के बाह्य भाग में स्थित उद्यान से महल तक धनंजय ने एक सुरंग बनवाई थी। उसी सुरंग ..जैन चरित्र कोश...
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