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जाने पर जयसेन राजा बना और लीलावती राजरानी बनी। लीलावती और चंद्रसेन के मध्य माता-पुत्र का सा अनन्य अनुराग भाव था। वह पानी भी लीलावती के हाथ से ही पीता था। एक बार जब लीलावती किसी कार्य में तल्लीन थी तो चंद्रसेन बाहर से आया और भाभी से पानी मांगा। लीलावती ने अपनी विवशता बताकर उसे स्वयं पानी ले लेने को कहा। चंद्रसेन ने बालहठ दिखाई और भाभी को ही पानी देने को कहा। भाभी ने ठिठोली करते हुए कहा, चंद्रावती के हाथ का पानी पीओगे तो ही तुम पानी का स्वाद जान पाओगे! कहकर भाभी हंसी और चंद्रसेन को पानी का पात्र प्रदान किया।
___चंद्रसेन ने पानी का पात्र रख दिया और चंद्रावती के बारे में जानने का आग्रह करने लगा। लीलावती ने चंद्रसेन को बहलाने के बहुत प्रयास किए पर वह उसके आग्रह को मिटा न सकी। चंद्रसेन द्वारा विवश कर दिए जाने पर आखिर लीलावती को बताना ही पड़ा। उसने बताया, चंद्रावती कंचनपुर नगर की राजकुमारी है। वह अतिशय रूपवान कन्या है। अनेक राजा और राजकुमार उससे विवाह करने को उत्सुक हुए। पर कोई भी उसे प्राप्त नहीं कर पाया। वह एक राक्षस के अधिकार में है। राक्षस ने चंद्रावती को प्राप्त करने की आकांक्षा से आए अनेक राजाओं और राजकुमारों को मौत के घाट उतार दिया है। राक्षस का चंद्रावती से पूर्वजन्म का सम्बन्ध है। इस पर भी उस राक्षस का एक सद्गुण यह है कि वह चंद्रावती से जबरदस्ती नहीं करता है। वह हर रोज रात्रि में चंद्रावती को कंचनपुर से उठा ले जाता है और सुबह होने पर वापस छोड़ जाता है। कंचनपुर नरेश ने यह घोषणा की है कि जो भी पुरुष चंद्रावती को राक्षस के चंगुल से छुड़वाएगा, उसे वह आधा राज्य देगा और चंद्रावती का पाणिग्रहण उसके साथ करेगा। ___ चंद्रसेन ने भाभी के मुख से यह किस्सा सुना और उसने घोषणा कर दी, अब मैं चंद्रपुर नगर का अन्न-जल तभी ग्रहण करूंगा, जब चंद्रावती को चंद्रपुर की वधू बना दूंगा। चंद्रसेन की यह भीष्म-प्रतिज्ञा सनकर लीलावती के प्राण कण्ठ में अटक गए। जयसेन. लीलावती सहित सभी ने चंद्रसेन को हठ त्यागने के लिए मनाया, पर वह मानने को तैयार नहीं हुआ और बोला, यह मेरा हठ नहीं है, यह मेरा वज्र संकल्प है। यह एक क्षत्रिय की प्रतिज्ञा है और बहुत ही शीघ्र मैं अपने संकल्प को साकार करके दिखाऊंगा। विवश बनकर सभी ने चंद्रसेन को अनुमति दे दी। चंद्रसेन अकेला ही कंचनपुर के लिए चल दिया। मार्ग में एक तांत्रिक के चंगुल से चंद्रसेन ने मदनमंजरी नामक राजकुमारी को मुक्त कराया। मदनमंजरी चम्पावती नगरी के राजा चित्रकेतु की पुत्री थी। राजा चित्रकेतु ने मदनमंजरी का विवाह चंद्रसेन से कर दिया और उसे आधा राज्य भी प्रदान किया।
__मदनमंजरी को अपनी प्रतिज्ञा से अवगत करा और उसकी अनुमति प्राप्त कर चंद्रसेन कंचनपुर के लिए चल दिया। मार्ग में इन्द्रपुरी नामक एक नगरी पड़ी, जो एक राक्षस द्वारा उजाड़ दी गई थी। चंद्रसेन ने अपनी वीरता और बुद्धिमत्ता से उस राक्षस को वश में किया और वहां की राजकुमारी तिलकसुंदरी से पाणिग्रहण किया। कुछ दिन उस नगरी में बिताकर चंद्रसेन आगे बढ़ा। तिलकसुंदरी भी पुरुषवेष धारण कर चंद्रसेन के साथ हो ली। तांत्रिक और राक्षस को परास्त करते हुए चंद्रसेन को रूपपरावर्तिनी, बलवर्धिनी आदि विद्याएं प्राप्त हो चुकी थीं। पर सबसे बड़ी विद्या तो व्यक्ति का अपना साहस और संकल्प ही होता है, जो चंद्रसेन के जीवन में पहले से ही मौजूद था। ___चंद्रसेन और तिलकसेन (तिलकसुंदरी) कंचनपुर पहुंचे। दोनों ने वहां राजा के अंगरक्षक के रूप में नौकरी प्राप्त की। कुछ दिन वहां रहकर चंद्रसेन ने राक्षस के क्रियाकलापों के बारे में पूरी जानकारी एकत्रित कर ली। फिर एक दिन उसने राजा को अपनी प्रतिज्ञा के बारे में बता दिया कि वह राक्षस का वध करने के ... 166 ...
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