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राजकुमार जब छोटे ही थे तो दुर्दैव-वश राजा चंदन को अपने राज्य से स्वेच्छया सपरिवार निर्वासन लेना पड़ा। ये चारों प्राणी कनकपुरी नगरी के किसी श्रेष्ठी के घर में सेवा-कार्य करने लगे। गृहकार्यों से जो समय बचता, उसका उपयोग मलयागिरि स्वयं के लिए करती। वह जंगल में जाती और वहां से लकड़ियां बीनकर बाजार में बेच देती। इससे कुछ अतिरिक्त आय हो जाती।
एक बार लक्खी नामक एक बंजारा अपने विशाल सार्थ के साथ कनकपुरी आया। नगरी के बाहर उसने अपने तंबू गाड़ दिए और व्यापार करने लगा। एक दिन लकड़ियां बेचती हुई मलयागिरि पर लक्खी की नजर पड़ गई। वह उसके रूप पर मोहित हो गया और सुविचारित योजनानुसार वह दोगुने मूल्य पर प्रतिदिन उसकी लकड़ियां खरीदने लगा। फिर एक दिन उसने मलयागिरि को बन्दिनी बना लिया और अन्यत्र प्रस्थान कर गया। उसने मलया को अपनी पत्नी बनाना चाहा। विभिन्न प्रलोभन दिए। पर अपने सतीत्व को प्राणों पर अधिमान देने वाली मलया के समक्ष उसकी एक न चली।
उधर चंदन और उसके पुत्र-सायर और नीर मलया के न लौटने से अधीर बन गए और उसे खोजने के लिए निकल पडे। जंगल में एक बरसाती नाले को पार करने के क्रम में राजा चंदन जल-प्रवाह में बह गया। सौभाग्यवश उसे एक लकड़ी हाथ लग गई, जिसके सहारे तैरता हुआ वह बहुत दूर तक चला गया। दूसरे दिन वह एक नगर के किनारे आ लगा। जल प्रवाह से निकलकर एक दिशा में चलने लगा। मार्ग में एक गांव में एक महिला चंदन के रूप पर आसक्त हो गई और उसे अपनाने के लिए उसकी सेवा करने लगी। स्वदार-संतोषी चंदन महिला के मनोभावों को जान गया और वहां से भाग निकला। वह चम्पापुर पहुंचा और वहां एक उद्यान में एक वृक्ष के नीचे लेट कर सो गया।
चम्पापुर नरेश का निःसंतान रहते हुए ही निधन हो गया था। नए राजा के चुनाव के लिए पंच दिव्य मंत्रियों ने सजाए, जिन्होंने उद्यान में सोते हुए चंदन का राजा के रूप में चयन कर लिया। दुर्दैव के बादल छंट चुके थे। चंदन का सौभाग्य-सूर्य पुनः चमक उठा और वह चम्पापुर का राजा बन गया।
उधर सायर और नीर की रक्षा एक दयालु सार्थवाह ने की। सार्थवाह ने सायर और नीर के कुल और गोत्र का परिचय प्राप्त कर उन्हें क्षत्रियोचित शिक्षा दिलाई। जब वे दोनों भाई सुशिक्षित और युवा हो गए तो श्रेष्ठी ने प्रयास कर उनको चम्पापुर नरेश के आरक्षी दल में नौकरी भी दिलवा दी।
एक बार लक्खी बंजारा चम्पापुर आया। उसने राजा से अपने सार्थ की रक्षा के लिए आरक्षियों की मांग की। राजा के आदेश पर सेनापति ने सायर और नीर को लक्खी बंजारे के सार्थ की रक्षा में नियुक्त कर दिया। रात्रि के समय पहरा देते हुए दोनों भाई अपने अतीत पर वार्ता करने लगे। मलयागिरि भी सार्थ के साथ ही थी। सायर और नीर की वार्ता सुनकर उसने जान लिया कि वे उसी के पुत्र हैं। मां और पुत्रों का मिलन हुआ। लक्खी बंजारे को इस भेद का ज्ञान हुआ तो आत्मरक्षा के हित वह राजा के पास पहुंचा और उसने अपना अपराध स्वीकार करते हुए राजा से अपने जीवन की भीख मांगी। सायर और नीर भी न्याय की फरियाद लेकर राजा के पास पहुंचे। मलयागिरि भी उपस्थित हुई। प्रत्येक ने प्रत्येक को पहचान लिया और बिखरा हुआ परिवार पुनः मिल गया।
बाद में महाराज चंदन को कुसुमपुर का राज्य भी प्राप्त हो गया। आयु के अन्तिम पड़ाव पर राजा चंदन ने अपने बड़े पुत्र सायर को कुसुमपुर का तथा छोटे पुत्र नीर को चम्पापुर का राज्य सौंपकर आचार्य सुस्थिर के पास दीक्षा धारण कर ली। मलयागिरि ने भी अपने पति का अनुगमन किया। विशुद्ध संयम की आराधना कर दोनों ने ही उत्तम गति प्राप्त की।
-चंदन मलयागिरि रास ... 160
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