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का पुण्य इतना चमकता चला गया कि उसने जिस भी कार्य में हाथ डाला, सफलता पाई। मिट्टी सोना बनती चली गई। गुणसुन्दरी के निर्देशन पर पुण्यपाल अपने व्यापार को बढ़ाता गया । एक दिन पुण्यपा इतना समृद्ध बन गया कि राजा अरिमर्दन की समृद्धि भी उसकी समृद्धि के समक्ष बौनी सिद्ध हो गई ।
पिता को सत्य से परिचित बनाने के लिए विशाल लावलश्कर के साथ गुणसुन्दरी अपने नगर में आई । किसी बड़े व्यापारी का आगमन -संदेश सुनकर राजा भी उसके स्वागत के लिए गया । पुण्यपाल ने राजा के लिए भोज की व्यवस्था की । आखिर पुत्री और जामाता को पहचान कर राजा का मिथ्या अहंकार गल गया । उसने पुण्यपाल को राजपाट सौंपकर मुनिव्रत धारण कर लिया।
दीर्घकाल तक राजसुख भोगकर गुणसुन्दरी और पुण्यपाल ने संयम धारण किया और अंत में निर्वाण पद प्राप्त किया
गुणा साध्वी
गुजरात प्रान्त की एक विदुषी जैन साध्वी । उन्होंने सिद्धर्षि सूरि कृत 'उपमिति भव प्रपंच कथा' नामक सुप्रसिद्ध ग्रन्थ का संस्कृत भाषा में विद्वत्ता पूर्ण अनुवाद किया था। गुणा जी का हस्तलिखित यह ग्रन्थ आज भी ‘भंडारकर ओरियण्टल रिसर्च इन्स्टीट्यूट पूना' में सुरक्षित है।
गोत्रासिया
एक गुप्तचर का पुत्र और हस्तिनापुर नरेश सुनंद का सेनापति । वह अति क्रूरकर्मा और मांसप्रिय था। (देखिए - उज्झित कुमार)
गोपालिका आर्या
प्राचीनकालीन एक जैन श्रमणी । (देखिए - नागश्री)
गोभद्र सेठ
राजगृह नगर के कोटीश्वर श्रेष्ठी, शालिभद्र के पिता और धन्य जी के श्वसुर । कहते हैं कि गोभद्र सेठ का अपने पुत्र शालिभद्र पर इतना सघन अनुराग था कि वह स्वर्ग से प्रतिदिन अपने पुत्र और बत्तीस पुत्रधुओं के लिए नितनूतन वस्त्राभूषण भेजा करते थे । (देखिए - शालिभद्र एवं धन्य जी)
गोमती
प्राचीनकालीन श्रीपुर नगर की रहने वाली एक अनवस्थित-चित्त महिला, जो धन-धान्य और परिवार से सम्पन्न व सुखी होने पर भी अपने अनवस्थित-चित्त के कारण सदैव अशांत और दुखी रहती थी। वह गृह-सेवकों से तो पूरा दिन लड़ती ही थी, पुत्र और पुत्रवधू से भी लड़ती रहती थी । उसके पुत्र ने विचार किया कि यदि उसकी माता को धर्मश्रवण का अवसर दिया जाए तो संभव है, उसकी आदतों का प्रक्षालन हो जाए और उसे शांति प्राप्त हो जाए। उसने एक दिन मधुर शब्दों से अपनी मां को इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह प्रतिदिन एक प्रहर तक धर्मकथा का श्रवण किया करेगी। पुत्र ने एक कथावाचक को उसकी माता को धर्मकथा सुनाने के लिए नियुक्त कर दिया। पण्डित गोमती को धर्मकथा सुनाने के लिए उसके घर उपस्थित होने लगा। पर अपने अनवस्थितचित्त के कारण गोमती धर्मकथा का एक शब्द भी नहीं सुन पाती। पण्डित के समक्ष बैठकर भी उसका चित्त गृहकार्यों में ही उलझा रहता। घर में पत्ता भी खड़ तो वह पण्डित जी को कथा कहते हुए छोड़कर पूरे घर का परीक्षण करती, सेवकों पर बरसती । प्रतिदिन • जैन चरित्र कोश •••
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