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कुमारपाल (राजा)
कुमारपाल गुजरात का यशस्वी सम्राट् था। चौलुक्य वंश की प्रशाखा सोलंकी वंश में उसका जन्म ई. सन् 1093 में दधिस्थल गांव में हुआ था। उसके पिता का नाम त्रिभुवनपाल और माता का नाम कशमीरा देवी था । त्रिभुवनपाल गुजरात नरेश सिद्धराज जयसिंह का भतीजा था। वह धर्मात्मा और राजभक्त था । जयसिंह का भी उस पर अनुराग भाव था । पर अपने राज्यकाल के अंतिम वर्षों में जयसिंह सिद्धराज त्रिभुवनपाल से नाराज हो गया और उसने उसकी हत्या करवा दी। वह कुमारपाल की भी हत्या करना चाहता था । पर कुमारपाल प्राण बचाकर देशान्तर चला गया और कई वर्षों तक देशान्तर में भटकता रहा ।
सिद्धराज जयसिंह का कोई पुत्र नहीं था । एक पुत्री थी । पुत्री से उत्पन्न पुत्र सोमेश्वर को उसने अपना उत्तराधिकारी घोषित किया। पर जयसिंह की मृत्यु होने पर आचार्य हेमचंद्र के आशीर्वाद से राज्य के मंत्रियों और सभासदों ने अन्हिलपुर पाटन के सिंहासन पर कुमारपाल का राजतिलक किया । सिंहासन पर बैठते समय कुमारपाल की आयु पचास वर्ष थी । परन्तु उसका उत्साह और शौर्य जवानों जैसा था। शासन के प्रारंभिक वर्षों में कुमारपाल ने कई राज्यों को जीतकर अपने राज्य का विस्तार किया । उसने उत्तर में पश्चिमी पंजाब, पूर्व में गंगा तट, पश्चिम में समुद्र तट तथा दक्षिण में सह्याद्रि प्रदेश पर्यंत विजय पताका फहराई ।
विशाल राज्य की सीमाओं को सुरक्षित करने के पश्चात् महाराज कुमारपाल अध्यात्म की ओर मुड़े । अपना अधिक समय वे अपने गुरु कलिकाल सर्वज्ञ आचार्य हेमचंद्र के चरणों में बिताने लगे। उन्होंने आचार्य श्री के उपदेशों से प्रभावित होकर अपने विशाल साम्राज्य में अमारि घोषित कर दी, द्यूत, शिकार और मद्य-निषेध का आदेश जारी किया । श्रावक व्रत धारण कर उन्होंने प्रजा के समक्ष एक आदर्श गृहस्थ और आदर्श राजा का उदाहरण प्रस्तुत किया। उनके शासनकाल में रामराज्य का आदर्श साकार हुआ। प्रजा में नैतिक मूल्यों प्रभूत विकास हुआ। गुजरात में समृद्धि और शान्ति का वह चरमोत्कर्ष काल रहा ।
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धर्म के प्रति अनन्य निष्ठा भाव के कारण महाराज कुमारपाल ने अपने शासनकाल में 1440 नवीन जैन मंदिरों का निर्माण कराया तथा 1600 पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया । साहित्य और संस्कृति का वह स्वर्णयुग रहा । साहित्य के क्षेत्र में आचार्य हेमचंद्र और उनके शिष्य रामचंद्र आदि मुनिराजों ने अद्भुत ग्रंथों की रचना की ।
महाराज कुमारपाल के स्वर्ण शासन का अन्त ई.स. 1172 में तब हुआ, जब आचार्य हेमचंद्र का अकस्मात् स्वर्गवास हो गया। गुरु के विरह को कुमारपाल सह न सके और एक मास के पश्चात् इनका भी स्वर्गवास हो गया ।
भारत के इतिहास में और विशेष रूप से गुजरात के इतिहास में महाराज कुमारपाल का शासनकाल स्वर्णयुग और रामराज्य के रूप में स्वर्णाक्षरित हुआ है। कई इतिहासकारों ने अशोक के समान महान नरेश के रूप में उनका प्रशस्ति गान किया है । - प्रमुख ऐतिहासिक जैन पुरुष और महिलाएं
कुमारसेन
एक राजकुमार, जिसकी इच्छा थी कि वह उसी राजकुमारी अथवा बाला से विवाह करेगा, जिसमें रूप-वैभव और बुद्धि-वैभव का पूर्ण सामंजस्य हो । उसने अपने पिता राजा सूर्यसेन और माता रानी ज्योत्स्ना से अपने हृदय की बात कही। राजा ने अपने पुत्र के विवाह के लिए ऐसी कन्या की खोज दूर देशों में कराई, पर उसकी इच्छा पूर्ण न हो सकी। आखिर राजा ने अपने पुत्र से कहा कि वह स्वयं देशाटन करे और अपने ••• जैन चरित्र कोश
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