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________________ है। साथ ही अविस्मरणीय यह भी है कि कोई कथा एक व्यक्ति के व्यक्तित्व पर ही केन्द्रित हो, यह अनिवार्य नहीं। उसमें एकाधिक व्यक्ति भी केन्द्र में हो सकते हैं। कोई र भाव या विचार भी केन्द्र में हो सकता है। कोई घटना भी केन्द्र में हो सकती है। कथा-रचना से चरित्र-लेखन इस बिंदु पर भी अलग होता है। चरित्र-लेखन के केन्द्र में अनिवार्यतः होता है-जनमानस में प्रतिष्ठित व्यक्ति का जीवन। इस जीवन का सारगर्भित रूप है । चरित्र-लेखन। जनमानस में प्रतिष्ठित होने के लिए किसी भी व्यक्तित्व का केवल लोकग्राह्य होना , अपेक्षित है। ऐतिहासिक वह हो भी सकता है और नहीं भी। काल्पनिक वह हो भी सकता है और नहीं भी। अतः चरित्रों के दो मुख्य स्रोत हैं-इतिहास या परंपरा और कथा या , काव्य। प्रस्तुत कोश में दोनों स्रोतों का उपयोग किया गया है। आगम, आगमाधृत साहित्य, लोकश्रुति और प्राचीन एवं नवीन जैन कथा साहित्य से ये चरित्र चुने गए हैं। में चुनाव का आधार क्या हो, यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न था। लेखन-कार्य प्रारंभ करते । हुए मन में भाव था कि तीर्थंकर ऋषभदेव से लेकर तीर्थंकर महावीर तक की कालावधि के जितने भी नाम आगम और आगमेतर साहित्य में उपलब्ध हैं, उन सबके संक्षिप्त चरित्रों का अंकन किया जाए पर जैसे-जैसे कार्य आगे बढ़ा, अनुभव हुआ कि समय-सीमा के बंधन का आग्रह रखने से अनेक महत्वपूर्ण चरित्र छूट जाएंगे। जैन मान्यतानुसार व्यक्ति का जीवन वर्तमान भव तक ही सीमित नहीं होता। वर्तमान भव उसके पूर्वभवों का फल होता है। प्रस्तुत ग्रंथ में चरित्रों के वर्तमान भव का आलेखन । १ किया गया है। समय-सीमा का आग्रह रखने पर जीवानंद वैद्य (पूर्वभव में प्रभु ऋषभदेव का नाम), धन्ना सार्थवाह आदि अनेक महत्वपूर्ण चरित्र छूट जाते। इसी प्रकार भगवान् महावीर के समय तक ही सीमित रहने पर आर्य जम्बू स्वामी, प्रभव स्वामी, शय्यंभव, भद्रबाहु, स्थूलिभद्र प्रभृति अनेक आधारभूत महत्व के चरित्र इस ग्रंथ से बाहर रह जाते। यह चरित्रों की दृष्टि से जैन परंपरा का यथासंभव पूर्ण परिचय न बन पाता। अतः समय-सीमा को आधार बनाने का विचार छोड़ देना उचित लगा। जनमानस में प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों अथवा प्रसिद्ध व्यक्तियों को ही आधार के रूप में ग्रहण किया , गया। प्रयास किया गया कि ऐसे अधिक से अधिक व्यक्तियों का जीवन नैतिक दृष्टि से 1 संक्षेप में अंकित हो। इसीलिए यहां प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान तक के विविध चरित्र प्रस्तुत किए जा सके। 14 कहना आवश्यक है कि जैन परंपरा के सभी चरित्र प्रस्तुत ग्रंथ में नहीं आ पाए हैं। - जैन चरित्र कोश ।
SR No.016130
Book TitleJain Charitra Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni, Amitmuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2006
Total Pages768
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size24 MB
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