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सुयश के धनी आचार्य उद्योतनसूरि ने अपने जीवन में कई बार तीर्थयात्राएं की। आबू पर्वत की तलहटी में बसे तेली ग्राम में उन्होंने काफी समय रहकर ज्ञान-ध्यान की आराधना की।
एक बार उन्होंने वटवृक्ष के नीचे एक साथ आठ शिष्यों को दीक्षा प्रदान की। एक अन्य कथन के अनुसार वटवृक्ष के नीचे उन्होंने अपने आठ विद्वान शिष्यों को आचार्य पद पर प्रतिष्ठित किया, जिससे वटशाखाओं की भांति उनका शिष्य परिवार विशेष वृद्धि को प्राप्त हुआ। वट वृक्ष के नीचे दीक्षाओं अथवा आचार्य पद प्रदान की महनीय घटना के कारण उनका गच्छ बड़गच्छ अथवा बड़ा गच्छ के नाम से ख्यात हुआ। आचार्य उद्योतनसूरि का समय वी.नि. की 15वीं शती माना जाता है। -उत्तराध्ययन सूत्र वृत्ति उन्मुख
वर्तमान अवसर्पिणी काल के नवम और अन्तिम नारद। ये अपरनाम 'कच्छुल' से भी पुकारे जाते हैं। एक बार इनके आगमन पर द्रौपदी ने इनका समुचित समादर नहीं किया तो ये नाराज हो गए और द्रौपदी को सबक सिखाने की ठान बैठे। फिर इन्होंने धातकीखण्ड के राजा पद्मनाभ के हृदय में द्रौपदी को पाने की इच्छा जगाई। पद्मनाभ ने जब द्रौपदी का हरण करवा लिया तो इन्हीं नारदजी ने श्रीकृष्ण को सूचना दी थी कि उन्होंने द्रौपदी जैसी नारी धातकीखण्ड की अमरकंका नगरी में देखी है। नारद सदैव भ्रमणशील और कलहप्रिय होते हैं। (देखिए-नारद) उपनंदनभद्र
भगवान महावीर की पट्टपरम्परा के छठे पट्टधर आचार्य संभूतविजय के एक शिष्य। उमास्वाति (आचार्य) ___ दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में समान रूप से मान्य एक उत्कृष्ट विद्वान जैन आचार्य। आचार्य उमास्वाति श्री तत्वार्थ सूत्र के रचयिता माने जाते हैं, जो सूत्र शैली में लिखा गया सर्वाधिक प्राचीन जैन ग्रन्थ है। तत्वार्थ सूत्र के दस अध्याय हैं और इसके सूत्रों की संख्या 357 है। यह जैन ज्ञान, विज्ञान, भूगोल-खगोल, कर्मसिद्धान्त, आत्मतत्व, पदार्थ विज्ञान आदि मुख्य विषयों का आधारभूत ग्रन्थ है। वर्तमान जैन धर्म की सभी परम्पराओं में यह ग्रन्थ विशेष रूप से समादृत है।
आचार्य उमास्वाति के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने अपने जीवन काल में 500 ग्रन्थों की रचना की थी। आचार्य उमास्वाति के समय के बारे में विभिन्न विद्वानों में मतैक्य नहीं है। पर यह विश्वासपूर्वक कहा जा सकता है कि वे वी. नि. की 5वीं से 8वीं शताब्दी के मध्य हुए हैं।
-जैन शिलालेख संग्रह, भाग-1 / तत्वार्थ भाष्य कारिका उवयालि कुमार वसुदेव और धारिणी के पुत्र। शेष परिचय जालिवत्।
-अंतकृद्दशांग सूत्र उषा
शुभनिवास नगर नरेश बाण की रूप-गुण निधान पुत्री, जिसका विवाह श्रीकृष्ण के पौत्र और प्रद्युम्न के पुत्र अनिरुद्ध के साथ हुआ था।
-जैन महाभारत
- जैन चरित्र कोश ...