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साहित्य के अतिरिक्त चूर्णि और नियुक्ति साहित्य कथाओं का एक विशाल कोश है।। इसमें ऐतिहासिक, पौराणिक और उपदेशात्मक सहस्रों कथाएं हैं।
वास्तव में कथाओं को जन्म दिया मनुष्य के जिज्ञासा-भाव ने। अतः रूप उनका चाहे जो रहा हो पर वे पुरानी उतनी ही हैं, जितनी कि जिज्ञासा-वृत्ति। वे तभी से चली में आ रही हैं, जब से कहने-सुनने की परंपरा। दूसरी बात यह है कि उनमें पात्रों का स्थान ।
भी तभी से चला आ रहा है। किसी न किसी के बारे में तो कहानी कही या लिखी ही जाएगी न! वही उसके पात्र हैं। पात्रों के बिना कहानी उसी तरह संभव नहीं हो सकती, जिस तरह मनुष्यों के बिना जीवन का श्रेष्ठतम रूप। में मनुष्य ही हैं, जो जीवन से कथाओं में जाकर उनके पात्र बनते रहे हैं और उन्हें ।
संभव करते रहे हैं। पात्र काल्पनिक हों तो भी कथाकार प्रयास यही करता है कि वे अधिक।
से अधिक जीवंत हों। गढ़े हुए या बनावटी न लगें। जीवंत अर्थात् जीवन के अधिक से । से अधिक निकट। स्वाभाविक और विश्वसनीय। मतलब यह कि पात्र कल्पना से आए हों। में तो भी उनकी सार्थकता का प्रतिमान है जीवन ही। जीवन से और जीवन के लिए होना ।
ही उनका जीवन है। ___कहानी पात्रों की होती है। पात्रों से बनती है। फिर भी वह पात्रांकन नहीं कहलाती, , कहानी कहलाती है। कारण यह कि पात्रों का वह उपयोग करती है कथारस तैयार करने
के लिए। उद्देश्य पात्रों का जीवन-परिचय देना नहीं है। उद्देश्य है-कथारस तैयार करना। कहानी बनाना। ऐसे में कहानी की जरूरत के अनुसार पात्रों के जीवन में परिवर्तन किया । जा सकता है। किया जाता है। कहानी-कला की दृष्टि से यह वांछनीय है पर क्या पात्रों । की दृष्टि से भी वांछनीय है?
सचमुच के मनुष्य पात्र बनकर कहानी को जन्म देते हैं और उसके लिए कुर्बान । हो जाते हैं। सवाल यह है कि उनके जीवन को सच्चाई और पूर्णता के साथ साहित्य में 5 अभिव्यक्त होना चाहिए या नहीं? ऐसी अभिव्यक्ति से साहित्य और समृद्ध होगा, इसमें 5 कोई संदेह नहीं। इसलिए सवाल यह भी है कि साहित्य की कौन-सी विधा है, जो इस अभिव्यक्ति को संभव करती है?
संस्मरण एक व्यक्ति का वास्तविक जीवन उतना नहीं होता, जितना संस्मरण- लेखक, १ के मन पर पड़ा हुआ उसका प्रतिबिम्ब होता है। आत्मीयता, मार्मिकता आदि संस्मरण , । के प्रयोजन हैं। रेखाचित्र का संबंध व्यक्ति के शब्द-चित्र से है पर उसके लिए चित्रात्मक,
कुशलता व्यक्ति के संपूर्ण जीवन से अधिक महत्वपूर्ण है। आत्मकथा अपनी ही हो,
स्विकथ्य I
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जैन चरित्र कोश।.