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________________ תתנחמתנחפרפרכתמתמחבתמהמחבתפחסחפתמחפרפתנחפרפתפתפתפתמהבהבתפחליפתם (158) पूज्यनिमित्तं घाते छागादीनां न कोऽपि दोषोऽस्ति। इति संप्रधार्य कार्य नातिथये सत्त्वसंज्ञपनम्॥ ____(पुरु. 4/45/81) 'पूज्य पुरुषों के लिये बकरे इत्यादि जीवों का घात करने में कोई दोष नहीं है'- ऐसी मान्यता रखते हुए अतिथि अथवा शिष्ट पुरुषों के लिये कोई जीवों का घात करे तो यह उचित ॐ नहीं है। (अतिथि तो देवता होता है। उसके लिए, उसकी भूख शान्त करने के लिए, पशु ॐ आदि मारना धर्म है- यह धारणा/मान्यता भी पूर्णतः अज्ञान-प्रसूत है।) Oहिंसाः कोई कुलाचार नहीं (159) हिंसा विघ्नाय जायेत विघ्नशान्त्यै कृताऽपि हि। कुलाचारधियाऽप्येषा कृता कुलविनाशिनी॥ (है. योग. 2/29) विघ्न की शांति के लिए की हुई हिंसा भी विघ्न के लिए होती है। कुलाचार की बुद्धि से की हुई कुल का विनाश करने वाली ही होती है। 如明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明那 (160) अपि वंशक्रमायातां यस्तु हिंसां परित्यजेत्। स श्रेष्ठः सुलस इव कालसौकरिकात्मजः॥ (है. योग. 2/30) वंश-परम्परा से प्रचलित हिंसा का भी जो त्याग कर देता है, वह कालसौकरिक ' (कसाई) के पुत्र सुलस के समान श्रेष्ठ पुरुष कहलाने लगता है। EUCLCLCELELELELEVELELEVELELELELEVELELEVELELEVELELELELE [जैन संस्कृति खण्ड/10
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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