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________________ FREEEEEETTTTTTTTEEEEEEEETTE ॐ किंकर तपस्वियों का वेष रख कर कहने लगे कि आप लोग भय को प्राप्त न हों। यह कह कर उन्होंने वसु का 卐 卐 सिंहासन स्वयं उठा कर लोगों को दिखला दिया। राजा वसु यद्यपि सिंहासन के साथ नीचे धंस गया था, तथ 卐 देकर कहने लगा कि मैं तत्त्वों का जानकार हूं, अत: इस उपद्रव से कैसे डर सकता हूं? मैं फिर भी कहता हूं कि 卐 पर्वत के वचन सत्य हैं। इतना कहते ही वह कंठपर्यंत पृथिवी में धंस गया। उस समय साधुओं व तपस्वियों ने बड़े 卐 卐 यत्र से यद्यपि प्रार्थना की थी कि हे राजन्! तेरी यह अवस्था असत्य-भाषण से ही हुई, इसलिए इसे छोड़ दे, तथापि卐 ॐ वह अज्ञानी (हिंसक) यज्ञ को ही सन्मार्ग बतलाता रहा। अंत में पृथिवी ने उसे कुपित होकर ही मानो निगल लिया 卐 " और वह मर कर सातवें नरक गया। अथासुरो जगत्प्रत्ययायादाय नरेन्द्रयोः। दिव्यं रूपमवाप्नुवावां यागश्रद्धया दिवम्॥ (440) नारदोक्तमपाकर्ण्यमित्युक्त्वाऽऽपददृश्यताम् । शोकाश्चर्यवतागात्स्वर्वसन हि महीमिति ॥ (441) संविसंवदमानेन जनेन महता सह । प्रयागे विश्वभूर्गत्वा राजसूयविधिं व्यधात्॥ (442) महापुराधिपाद्याच निन्दन्तो जनमूढताम्। परमब्रह्मनिर्दिष्टमार्गरक्ता मनाक स्थिताः॥ (443) नारदेनैव धर्मस्य मर्यादेत्यभिनन्द्य तम्। अधिष्ठानमदुस्तस्मै पुरं गिरितटाभिधम्॥ (444) तापसाच दयाधर्मविध्वंसविधुराशयाः। कलयन्तः कलिं कालं विचेलःस्वं स्वमाश्रमम्॥ (445) 明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明私 听听听听听听听听听听听明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 तदनन्तर वह असुर जगत् को विश्वास दिलाने के लिए राजा सगर और वसु का सुंदर रूप धारण कर कहने लगा कि हम दोनों नारद का कहा न सुन कर यज्ञ की श्रद्धा से ही स्वर्ग को प्राप्त हुए हैं। इस प्रकार कह कर वह अदृश्य हो गया। इस घटना से लोगों को बहुत शोक और आश्चर्य हुआ। उनमें कोई कहता था कि राजा सगर स्वर्ग गया है और कोई कहता था कि नहीं, नरक गया है। इस तरह विवाद करते हुए विश्वभू मंत्री अपने घर चला गया। तदनन्तर प्रयाग में उसने राजसूय यज्ञ किया। इस पर महापुर आदि नगरों के राजा मनुष्यों की मूढ़ता की निंदा करने लगे और परम ब्रह्म-परमात्मा के द्वारा बतलाए मार्ग में तल्लीन होते हुए थोड़े दिन तक यों ही ठहरे रहे। इस समय नारद के द्वारा ही धर्म की मर्यादा स्थिर रह सकी है, इसलिए सब लोगों ने उसकी बहुत प्रशंसा की और उसके लिए गिरितट नाम का OF नगर प्रदान किया। तापस लोग भी दया-धर्म का विध्वंस देख बहुत दुःखी हुए और कलिकाल की महिमा समझते हुए अपने-अपने आश्रमों में चले गए। ELELELELELELELELELELELEVELELELELELELELELELELELELELE अहिंसा-विश्वकोश/511]
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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