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________________ EFFERTISHTHHTHHTHESEFE पर्वतोक्तं भयं हित्वा कुरुध्वं स्वर्गसाधनम्। इति हिंसानृतानन्दाद् बध्वाऽऽयुरिकं प्रति ॥ (428) मिथ्यापापापवादाभ्यामभीरुरभणीदिदम् । अहो महीपतेर्वक्त्रादपूर्व घोरमीदृशम्॥ (429) निर्यातमिति वैषम्यादुक्ते नारदतापसैः। आक्रोशदम्बरं नद्यः प्रतिकूलजलस्रवाः॥ (430) सद्यः सरांसि शुष्काणि रक्तवृष्टिरनारता। तीवांशोरंशवो मंदा विश्वाशाच मलीमसा:॥ (431) बभूवुः प्राणिनः कम्पमादधुर्भयविहलाः। तदा महाध्वनिर्धात्री द्विधा भेदमुपागता॥ (432) वसोस्तस्मिन् महारन्धे न्यमज्जत्सिहविष्टरम्। तदृष्टवा देवविद्याधरेशा घनपथे स्थिताः ॥ (433) अतिक्रम्यादिम मार्ग वसुराजमहामते । धर्मविध्वंसनं मार्ग माभिधा इत्यघोषयन् ॥ (434) इसलिए तुम लोग भय छोड़ कर जो पर्वत कह रहा है वही करो, वही स्वर्ग का साधन है। इस प्रकार हिंसानन्दी और मृषानन्दी रौद्रध्यान के द्वारा राजा वसु ने नरकायु का बंध कर लिया तथा असत्य-भाषण के पाप और लोकनिंदा से नहीं डरने वाले राजा वसु ने उक्त वचन कहे। राजा वसु की यह बात सुन कर नारद और तपस्वी कहने लगे कि आश्चर्य है कि राजा के मुख से ऐसे भयंकर शब्द निकल रहे हैं, इसका कोई विषम कारण अवश्य है। उसी समय आकाश गरजने लगा, नदियों का प्रवाह उलटा बहने लगा, तालाब शीघ्र ही सूख गए, लगातार रक्त की वर्षा होने लगी, सूर्य की किरणें फीकी पड़ गई, समस्त दिशाएं मलिन हो गई। प्राणी भय से विह्वल होकर कांपने लगे, बड़े जोर का शब्द करती हुई पृथिवी फट कर दो टूक हो गई और राजा वसु का सिंहासन उस महागर्त में निमग्न हो गया। यह देख आकाश-मार्ग में खड़े हुए देव और विद्याधर कहने लगे कि बुद्धिमान् राजा वसु! सनातन मार्ग का उल्लंघन धर्म का विध्वंस करने वाले मार्ग का निरूपण मत करो। 少$听听听听听听听听听听听听听听听鲜明明明明明明明明明明明明明明明明明明明明 पर्वतं वसराजं च सिंहासन-निमज्जनात्। परिग्लानमुखौ दृष्ट्वा महाकालस्य किंकराः॥ (435) तापसाकारमादाय भयं मात्र स्म गच्छतम्। इत्यात्मोत्थापितं चास्या दर्शयन् हरिविष्टरम्॥ (436) नृपोऽप्यहं कथं तत्त्वविद् विभेम्यमषं वचः। पर्वतस्यैव निश्चिन्वन्नित्याकंठं निमग्नवान॥ (437) अनेनेयमवस्थाऽभून्मिथ्यावादेन भूपते। त्यजेममिति संप्रार्थितोऽपि यत्लेन साधुभिः॥ (438) तथापि यज्ञमेवाज्ञः सन्मार्ग प्रतिपादयन् । भुवा कुपित एवासौ निगीर्णोऽन्त्यामगात्क्षितिम्॥ (439) पृथिवी में सिंहासन घुसने से पर्वत और राजा वसु का मुख फीका पड़ गया। यह देख महाकाल के 卐 FEELFUELEHEREE-ELELELELELELELELELELELELETELEVELELELELELELER नयानगगगगगगगगगनचाच [जैन संस्कृति खण्ड/310
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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