SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 483
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (1124) SHREEHEYENEFINFYFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFFYFYEAR साम्यमेव परं ध्यानं प्रणीतं विश्वदर्शिभिः। तस्यैव व्यक्तये नूनं मन्येऽयं शास्त्रविस्तरः॥ (ज्ञा. 22/13/1159) समस्त लोक के ज्ञाता-द्रष्टा सर्वज्ञ देव ने एक साम्यभाव को ही उत्कृष्ट ध्यान के रूप में निरूपित किया है। मेरा तो यह विचार है कि सभी शास्त्रों का विस्तार (भी) उसी ' साम्य' को स्पष्ट करने के लिए ही हुआ है। (11251 ~~~~~~~~~~~~~~~~~明明 चारित्तं खलु धम्मो धम्मो जो सो समोत्ति णिट्ठिो। मोहक्खोहविहीणो परिणामो अप्पणो हि समो ॥ (प्रव. 1/7) निश्चय से चारित्र धर्म को कहते हैं, शम अथवा साम्यभाव को धर्म कहा है, और मोह- मिथ्या दर्शन तथा क्षोभ- राग द्वेष से रहित आत्मा का परिणाम ही शम अथवा ॥ साम्यभाव कहलाता है। 如听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 O अहिंसा-यग आदि का अनुछानः ध्यान-योग का अंग 听听听听听听听听听听听 明明明明明明 {1126 इहाहिंसादयः पञ्च सुप्रसिद्धा यमाः सताम्। अपरिग्रहपर्यन्तास्तथेच्छादिचतुर्विधाः ॥ (यो.दृ.स. 214) अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह- ये पांच यम साधकों में सुप्रसिद्धसुप्रचलित हैं। इनमें अहिंसा से अपरिग्रह तक प्रत्येक के इच्छायम, प्रवृत्तियम, स्थिरयम म तथा सिद्धियम के रूप में चार-चार भेद हैं। ये चारों भेद अहिंसा आदि यमों की तरतमता ' या विकासकोटि की दृष्टि से हैं, उनके क्रमिक अभिवर्धन के सूचक हैं। इन भेदों के आधार पर निम्नांकित रूप में यम बीस प्रकार के होते हैं। अहिंसा:__ 1. इच्छा-अहिंसा, 2. प्रवृत्ति-अहिंसा, 3. स्थिर-अहिंसा, 4. सिद्धि-अहिंसा। ' , תככתכתבתמיכתכתפתכתפיכתנתפתתפתפּתפתפתכתבתפיפיפיפיפיפיפיפיפיפים - LELELELEUCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCLCUEUEUELCLCLCLCLCLCLCLC अहिंसा-विश्वकोश।455)
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy