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יפיפיפיפיפיפיפיפיפיפיפתעתנחשףמחפףבףבףםםםםםםםםםםםםםתסתבכתבתכם.
सत्यः
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5. इच्छा-सत्य, 6. प्रवृत्ति-सत्य, 7. स्थिर-सत्य, 8. सिद्धि-सत्य। अस्तेयः9. इच्छा-अस्तेय,10. प्रवृत्ति-अस्तेय, 11. स्थिर-अस्तेय, 12. सिद्धि-अस्तेय। ब्रह्मचर्य:13. इच्छा-ब्रह्मचर्य, 14. प्रवृत्ति-ब्रह्मचर्य, 15. स्थिर-ब्रह्मचर्य, 16. सिद्धि-ब्रह्मचर्य। अपरिग्रहः
17. इच्छा-अपरिग्रह, 18. प्रवृत्ति-अपरिग्रह, 19. स्थिर-अपरिग्रह, 20. सिद्धिॐ अपरिग्रह।
(1127) तद्वत्कथाप्रीतियुता तथाऽविपरिणामिनी। यमेष्विच्छावसेयेह प्रथमो यम एव तु ॥
(यो.दृ.स. 215) यमों के प्रति आन्तरिक इच्छा, अभिरुचि, स्पृहा, आकांक्षा, जो यमाराधक सत्पुरुषों 卐 की कथा में प्रीति लिए रहती हैं, जिसमें इतनी स्थिरता होती है कि जो कभी विपरिणत नहीं 卐
होती-अनिच्छारूप में परिणत नहीं होती-पहला 'इच्छायम' है।
[11281
सर्वत्र शमसारं तु यमपालनमेव यत्। प्रवृत्तिरिह विज्ञेया द्वितीयो यम एव तत् ॥
(यो.दृ.स. 216) इच्छायम द्वारा अहिंसा आदि में उत्कण्ठा जागरित होती है, अंतरात्मा में उन्हें ॐ स्वायत्त करने की तीव्र भावना उत्पन्न होती है। फलतः साधक जीवन में उन्हें (अहिंसा
आदि यमों को) क्रियान्वित करता है, प्रवृत्ति में स्वीकार करता है-उनमें प्रवृत्त होता है, वह 'प्रवृत्ति-यम' है।
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[जैन संस्कृति खण्ड/456