SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 440
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ $$$%%%%%%%%%%%%%%% % %%%%%%%%%% B (1025) $$$$$$$$$$$$$ पुढविकायं न हिंसंति मणसा वयंसा कायसा। तिविहेण करणजोएण संजया सुसमाहिया॥ (26) पुढविकायं विहिंसंतो हिंसई तु तदस्सिए। तसे य विविहे पाणे चक्खुसे य अचक्खुसे ॥ (27) तम्हा एयं वियाणित्ता दोसं दोग्गइवड् ढणं । पुढविकाय-समारंभं जावज्जीवाए वज्जए॥ (28) (दशवै. 6/289-291) श्रेष्ठ समाधि वाले संयमी (साधु-साध्वी) मन, वचन और काय- इस त्रिविध योग से और कृत, कारित एवं अनुमोदन- इस त्रिविध करण से पृथ्वीकाय की हिंसा नहीं करते। (26) ' पृथ्वीकाय की हिंसा करता हुआ (साधक) उसके आश्रित रहे हुए विविध प्रकार के म चाक्षुष (नेत्रों से दिखाई देने वाले) और अचाक्षुष (नहीं दिखाई देने वाले) त्रस और स्थावर ॥ प्राणियों की हिंसा करता है। (27) इसलिए इसे दुर्गतिवर्द्धक दोष जान कर यावजीवन पृथ्वीकाय के समारम्भ का त्याग करे। (28) 听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 {1026) कर्मादाननिमित्तक्रियोपरमो हि चारित्रम्। रागादयश्च कर्मादाननिमित्तक्रियास्तथा अशुमनोवाक्कायक्रियाश्च कर्मादाननिमित्ताः। तथा षड्जीवनिकायबाधापरिहारमन्तरेण # गमनम्। मिथ्यात्वेऽसंयमे वा प्रवर्तकं वचनं साक्षात्पारंपर्येण वा जीवबाधा-करणं ॥ भोजनं अप्रत्यवेक्षिताप्रमार्जितादाननिक्षेपौ शरीरमलोत्सर्गो जीवपीडाहे तुरेताः कर्मपरिग्रहनिमित्ताः क्रियाः। आसां परिवर्जनं चारित्रविनयः। (भग. आ. विजयो. 302) कर्मों के ग्रहण में निमित्त क्रियाओं के रोकने को 'चारित्र' कहते हैं। रागादि कर्मों को ग्रहण में निमित्त 'क्रिया' है। अशुभ मन, वचन और काय की क्रिया भी कर्मों के ग्रहण में है ' निमित्त होती है। छहकाय के जीवसमूह को बाधा न पहुंचाये बिना गमन करना, मिथ्यात्व के 卐 और असंयम में प्रवर्तक वचन बोलना, साक्षात् या परम्परा से जीवों को बाधा करने वाला है भोजन करना, बिना देखे और बिना साफ किये वस्तुओं को ग्रहण करना और रखना, बिना देखी और बिना साफ की गई भूमि में मलमूत्र त्यागंना- ये सब क्रियाएं जीवों को कष्ट म पहुंचाने वाली हैं, अतः कर्मों के ग्रहण में निमित्त हैं। इनको त्यागना 'चारित्र विनय' है। YEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEET [जैन संस्कृति खण्ड/412 E
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy