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________________ FFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEE 卐 मेधावी मनुष्य स्वयं षट्-जीवनिकाय का समारंभ न करे। दूसरों से उसका समारंभ न करवाए। उसका समारंभ करने वालों का अनुमोदन भी न करे। जिसने 'षट्-जीव निकाय-शस्त्र' का प्रयोग भलीभांति समझ लिया, त्याग दिया है, ॐ वही परिज्ञातकर्मा मुनि कहलाता है। ऐसा मैं कहता हूं। 明明明明明 明明明明 (1024) तत्थ खलु भगवता छज्जीवणिकाया हेऊ पण्णत्ता, तंजहा-पुढविकाइया जाव तसकाइया, से जहानामए मम अस्सातं डंडेण वा अट्टीण वा मुट्ठीण वा लेलूण वा 卐क वालेण वा आतोडिज्जमाणस्स वा जाव उद्दविजमाणस्स वा जाव卐 卐 लोमुक्कखणणमातमवि विहिंसक्कारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेमि, इच्चेवं जाण सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता दंडेण वा जाव कवालेण वा आतोडिज्जमाणा वा हम्ममाणा वा तज्जिज्जमाणा वा तालिज्जमाणा वा जाव उद्दविज्जमाणा वा जाव म लोमुक्खणणमातमवि विहिंसक्कारं दुक्खं भयं पडिसंवेदेति, एवं णच्चा सव्वे पाणा जाव सव्वे सत्ता ण हंतव्वा जाव ण उद्देयेव्वा, एस धम्मे धुवे णितिए सासते समेच्च लोगं खेत्तण्णे हिं पवेदिते । एवं से भिक्खू विरते पाणातिवातातो जाव मिच्छादसणसल्लातो। (सू.कृ. 2/4/753, द्र. 2/1/सू. 679) तीर्थंकर भगवान् ने षड् जीवनिकायों को (संयम-अनुष्ठान का) कारण बताया है। वे छह प्राणिसमूह इस प्रकार हैं- पृथ्वीकाय से लेकर त्रसकाय तक के जीव। जैसे कि किसी 卐 व्यक्ति द्वारा डंडे से, हड्डियों से, मुक्कों से, ढेले से या ठीकरे से मैं ताड़न किया जाऊं या ) पीड़ित (परेशान) किया जाऊं, यहां तक कि मेरा केवल एक रोम उखाड़ा जाए तो मैं + हिंसाजनित दुःख, भय और असाता का अनुभव करता हूं, इसी तरह जानना चाहिए कि समस्त प्राणी यावत् सभी सत्त्व डंडे आदि से लेकर ठीकरे तक से मारे जाने पर एवं पीड़ित 卐 किए जाने पर, यहां तक कि एक रोम भी उखाड़े जाने पर हिंसाजनित दुःख और भय का ॥ * अनुभव करते हैं। ऐसा जान कर समस्त प्राणियों यावत् सभी सत्त्वों को नहीं मारना चाहिए, यहां तक कि उन्हें पीड़ित (उपद्रवित) नहीं करना चाहिए। यह (अहिंसा) धर्म ही ध्रुव है, ॐ नित्य है, शाश्वत है, तथा लोक के स्वभाव को सम्यक् जान कर खेदज्ञ या क्षेत्रज्ञ तीर्थंकर के ॐ देवों द्वारा प्रतिपादित है। यह जान कर साधु प्राणातिपात से लकर मिथ्यादर्शन शल्य तक卐 ॐ अठारह ही पापस्थानों से विरत होता है। NEEYENEFERREYEEEEEEEEEEEEEEEEEE अहिंसा-विश्वकोश।4111 明明明明明明
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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