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________________ HEE TEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEM {949) पेसुण्णहासकक्कसपरणिंदप्पप्पसंसियं वयणं । परिचत्ता सपरहिदं भासासमिदी वदंतस्स ॥ ____ (नि.सा. 62) पैशुन्य- चुगली, हास्य, कर्कश, परनिन्दा और आत्म-प्रशंसारूप वचन को छोड़ कर स्वपर-हितकारी वचन को बोलने वाले साधु के 'भाषा समिति' होती है। {950) परसंतावयकारणवयणं मोत्तूण सपरहिदवयणं । जो वददि भिक्खु तुरियो तस्स दु धम्मो हवे सच्चं ॥ (बा. अणु. 74) दूसरों को संताप करने वाले वचन को छोड़ कर जो भिक्षु स्वपरहितकारी वचन * बोलता है, उसके चौथा 'सत्यधर्म' होता है। 19511 明明明明明明明明 弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱弱→ आसणं सयणं जाणं होजा वा किंचुवस्सए। भूओवघाइणिं भासं, नेवं भासेज पण्णवं ॥ (29) (दशवै. 7/360) (इसी प्रकार अमुक वृक्ष में) आसन, शयन (सोने के लिए पट्टा), यान (रथ आदि) और उपाश्रय के (लिए) उपयुक्त कुछ (काष्ठ) हैं- इस प्रकार की भूतोपघातिनी 卐 (प्राणि-संहारकारिणी) भाषा प्रज्ञासम्पन्न साधु (या साध्वी) न बोले। {952) सच्चं असच्चमोसं अलियादीदोसवजमणवजं । वदमाणस्सणुवीची भासासमिदी हवदि सुद्धा॥ (भग. आ. विजयो. 1186) वचन के चार प्रकार हैं- सत्य, असत्य, सत्यसहित असत्य और असत्यमृषा। सजनों के हितकारी वचन को सत्य कहते हैं। जो वचन न सत्य होता है और न असत्य; उसे 卐 卐 असत्यमृषा कहते हैं। इस प्रकार सत्य और असत्यमृषा वचन, को बोलना तथा असत्य, 卐 कठोरता, चुगली आदि दोषों से रहित और अनवद्य अर्थात् जिससे पाप का आस्रव न हो - ऐसा वचन सूत्रानुसार बोलने वाले के शुद्ध 'भाषासमिति' होती है। WEEEEEEEEEEEEERTAINEEEEEEEEEEEEEEEEN अहिंसा-विश्वकोश।3811
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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