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________________ FFFFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEETHERS (अहिंसा की अभिव्यक्षिः वाणी से) # सत्य महाव्रत/भाषा समिति ॐॐॐॐॐ卐卐ttyyyyyyyyyyyya {947) यद्रागद्वेषमोहेभ्यः परतापकरं वचः। निवृत्तिस्तु ततः सत्यं तद् द्वितीयं तु महाव्रतम् ॥ (ह. पु. 2/118) राग, द्वेष अथवा मोह के कारण दूसरों के सन्ताप उत्पन्न करने वाले जो वचन हैं, उनसे निवृत्त होना द्वितीय 'सत्य महाव्रत' है। {948). तहेव फरुसा भासा, गुरुभूओवघाइणी। सच्चा वि सा न वत्तव्वा, जओ पावस्स आगमो॥ (11) तहेव काणं काणेत्ति, पंडगं 'पंडगे' त्ति वा। वाहियं वा वि रोगि त्ति, तेणं चोरे त्ति नो वए। (12) एएणऽन्नेण अद्वेण परो जेणुवहम्मई। आयारभाव-दोसण्णू ण तं भासेज पण्णवं ॥ (13) (दशवै. 7/342-344)卐 जो भाषा कठोर हो तथा बहुत (या महान्) प्राणियों का उपघात करने वाली हो, वह म सत्य होने पर भी मुनि द्वारा बोलने योग्य नहीं है, क्योंकि ऐसी भाषा से पापकर्म का बन्ध 卐 (या आस्रव) होता है। (11) इसी प्रकार, काने को काना, नपुंसक (पण्डक) को नपुंसक तथा रोगी को रोगी और चोर को चोर न कहे। (12) इस (पूर्वगाथा में उक्त) अर्थ (भाषा) से अथवा अन्य (इसी कोटि की दूसरे) जिस अर्थ (भाषा) से कोई प्राणी पीड़ित (उपहत) 卐 होता है, उस अर्थ (भाषा) को आचार (वचनसमिति तथा वाग्गुप्ति-गत आचरण) सम्बन्धी 卐 भावदोष (प्रद्वेष-प्रमाद-रूप वैचारिक दोष) को जानने वाला प्रज्ञावान् साधु (कदापि) न बोले। (13) 由绵绵听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听 ALELELELELELELELELELELELCLCLELELELELELELEUCUCUELEUEUEUEUEUEUEUE [जैन संस्कृति खण्ड/380
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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