SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 404
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 卐 $$$ 卐 筑 卐 卐 (939} से गामे वा नगरे वा, गोयरग्गगओ मुणी । चरे मंदमणुव्विग्गो अव्वक्खित्तेण चेयसा ॥ (2) 卐 (दशवै. 5/84 ) ग्राम या नगर में गोचराग्र के लिए प्रस्थित ( निकला हुआ) मुनि अनुद्विग्न और 馬 2 अव्याक्षिप्त (एकाग्र = स्थिर) चित्त से धीमे-धीमे चले। (2) (940) पवडते व से तत्थ, पक्खलंते व संजए । हिंसेज्ज पाणभूयाई, उसे अदुव थावरे ॥ (5) हुआ प्राणियों और भूतों- त्रस या स्थावर जीवों की हिंसा कर सकता है। (5) 卐 (साधु या साध्वी) उन गड्ढे आदि से गिरता हुआ या फिसलता (स्खलित होता) (दशवै. 5/87 ) (941) अट्ठ सुहुमाई पेहाए जाई जाणित्तु संजए । दयाहिगारी भूसु आस चिट्ठ सए हि वा ॥ (13) 卐 馬 (942) 卐 से भिक्खू वा गामाणुगामं दूइजमाणे पुरओ जुगमायं पेहमाणे दट्ठूण तसे संयमी (यतनावान् साधु) जिन्हें जान कर (ही वस्तुतः ) समस्त जीवों के प्रति दया (दशवै. 8 / 401) का अधिकारी बनता है, उन आठ प्रकार के सूक्ष्मों (सूक्ष्म शरीर वाले जीवों) को भलीभांति देखकर ही बैठे, खड़ा हो अथवा सोए । पाणे उद्धट्टु पादं रीएज्जा, साहट्टु, पादं रीएज्जा, वितिरिच्छं वा पाद एज्जा, कट्टु सति परक्कमे संजयामेव परक्कमेज्जा, णो उज्जुयं गच्छेज्जा, ततो संजयामेव गामाणुगामं दुइज्जेज्जा । सेभिक्खू वा गामाणुगामं दूइज्जमाणे, अंतरा से पाणाणि वा बीयाणि वा [ जैन संस्कृति खण्ड /376 हरियाणि वा उदए वा मट्टिया वा अविद्धत्था, सति परक्कमे जाव णो उज्जुयं गच्छेजा, ततो संजयामेव गामाणुगामं दूइजेज्जा । $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ ( आचा. 2/3/1 सू. 469-470 ) CLELELELELELELELE הברבבבבבבברברב 卐
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy