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________________ FFEESEFFEEEEEEEEEEEEEEEEEEEEP भगवान् ने कहा-आयुष्मन्! यह गृही साधकों का आचरणीय धर्म है। इस धर्म के 卐 अनुसरण में प्रयत्नशील होते हुए श्रमणोपासक-श्रावक या श्रमणोपासिका-श्राविका आज्ञा के 卐 आराधक होते हैं। [टिप्पण: कुछ आचार्यों के मत में गुणव्रतों और शिक्षाव्रतों का निरूपण भिन्न रूप से भी किया गया प्राप्त होता है। जैसे, दिग्व्रत, देशव्रत और अनर्थदण्ड त्याग- ये तीन गुणव्रत माने गए हैं और सामायिक, प्रोषधोपवास, भोगोपभोग-परिमाण तथा अतिथि संविभाग/ वैयावृत्त्य- इन्हें चार शिक्षाव्रतों के रूप में निरूपित किया गया है।] {730) गुणव्रतान्यपि त्रीणि पश्चाणुव्रतधारिणः। शिक्षाव्रतानि चत्वारि भवन्ति गृहिणः सतः॥ (ह. पु. 58/143-144) पांच अणुव्रतों के धारक सद्गृहस्थ के तीन गुणव्रत और चार शिक्षाव्रत भी होते हैं। Oअहिंसा-पोषक: अनर्थदण्डविरति 17311 विरई अणत्थदंडे तच्चं स चठव्विहो अवज्झाणो। पमायायरिय-हिंसप्पयास-पावोवएसे य ॥ (श्रा.प्र. 289) अनर्थदंड' के विषय में जो निवृत्ति की जाती है, उसे अनर्थदंडवत नाम का तीसरा गुणव्रत कहा जाता है। वह 'अनर्थदंड' चार प्रकार है- अपध्यान, प्रमादाचरित, हिंसा-प्रदान म और पापोपदेश। [बिना किसी उद्देश्य के जो हिंसा की जाती है, उसका समावेश अनर्थदंड में होता है। यद्यपि हिंसा तो हिंसा ! 卐ही है, पर जो लौकिक दृष्टि से आवश्यकता या प्रयोजन के वश की जाती है, उसमें तथा निरर्थक की जाने वाली हिंसा 卐 में बड़ा भेद है। आवश्यकता या प्रयोजन के वश हिंसा करने को जब व्यक्ति बाध्य होता है तो उसकी विवशता को卐 卐 देखते हुए उसे व्यावहारिक दृष्टि से क्षम्य भी माना जा सकता है; पर जो प्रयोजन या मतलब के बिना हिंसा आदि काम आचरण करता है, वह सर्वथा अनुचित है। इसलिए उसे 'अनर्थदंड' कहा जाता है। वृत्तिकार आचार्य अभयदेव सूरि ने धर्म, अर्थ तथा काम रूप प्रयोजन के बिना किये जाने वाले हिंसापूर्ण) कार्यों को 'अनर्थदंड' कहा है। म 'अनर्थदंड' के अन्तर्गत लिए गए 'अपध्यानाचरित' का अर्थ है-दुश्चिन्तन। दुश्चिन्तन भी एक प्रकार से ज हिंसा ही है। वह आत्मगुणों का घात करता है। दुश्चिन्तन दो प्रकार का है-आर्तध्यान तथा रौद्रध्यान । अभीप्सित वस्तु, । जैसे धन-संपत्ति, संतति, स्वस्थता आदि प्राप्त न होने पर एवं दारिद्य, रुग्णता, प्रियजन का विरह आदि अनिष्ट के अहिंसा-विश्वकोश।3071
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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