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________________ 卐 स्थितियों के होने पर मन में जो क्लेशपूर्ण विकृत चिन्तन होता है, वह आर्तध्यान है। क्रोधावेश, शत्रु-भाव और वैमनस्य 卐 आदि से प्रेरित होकर दूसरे को हानि पहुंचाने आदि की बात सोचते रहना 'रौद्रध्यान' है। इन दोनों तरह से होने वाला है 卐 दुश्चिन्तन अपध्यानाचरित रूप अनर्थदंड है। 卐 प्रमादाचरित- अपने धर्म, दायित्व व कर्तव्य के प्रति अजागरूकता 'प्रमाद' है। ऐसा प्रमादी व्यक्ति अक्सर卐 卐 अपना समय दूसरों की निन्दा करने में, गप्प मारने में, अपने बडप्पन की शेखी बघारते रहने में, अधील बातें करने 卐 卐 में बिताता है । इनसे संबंधित मन, वचन तथा शरीर के विकार प्रमाद-चरित में आते हैं। हिंस्र-प्रदान-हिंसा के कार्यों 卐 में साक्षात् सहयोग करना, जैसे चोर, डाकू तथा शिकारी आदि को हथियार देना, आश्रय देना तथा दूसरी तरह से सहायता करना। ऐसा करने से हिंसा को प्रोत्साहन और सहारा मिलता है, अत: यह अनर्थदंड है। 卐 पापकर्मोपदेश- औरों को पाप-कार्य में प्रवृत्त होने के लिए प्रेरणा, उपदेश या परामर्श देना। उदाहरणार्थ, किसी शिकारी को यह बतलाना कि अमुक स्थान पर शिकार-योग्य पशु-पक्षी उसे बहुत प्राप्त होंगे, किसी, व्यक्ति को दूसरों को तकलीफ देने के लिए उत्तेजित करना, पशु-पक्षियों को पीड़ित करने के लिए लोगों को दुष्प्रेरित करनाॐ इन सबका पाप-कर्मोपदेश में समावेश है।। के अनर्थदंड में लिए गए ये चारों प्रकार के दुष्कार्य ऐसे हैं, जिनका प्रत्येक धर्मनिष्ठ, शिष्ट व सभ्य नागरिक पनको परित्याग करना चाहिए। अध्यात्म-उत्कर्ष के साथ-साथ उत्तम और नैतिक नागरिक जीवन की दृष्टि से भी ये बहुत पर ही आवश्यक हैं। (732) विषकण्टकशस्त्रानिरज्जुदण्डकशादिनः । दानं हिंसाप्रदानं हि हिंसोपकरणस्य वै॥ हिंसारागादिसंवर्धिदुःकथाश्रुतिशिक्षयोः । पापबन्धनिबन्धो यः स स्यात्पापाशुभश्रुतिः॥ __(ह. पु. 58/151-152) ____ विष, कण्टक, शस्त्र, अग्नि, रस्सी, दण्ड तथा कोड़ा आदि हिंसा के उपकरणों का देना- हिंसादान नाम का अनर्थदण्ड है। हिंसा तथा रागादि को बढ़ाने वाली दुष्ट कथाओं के सुनने तथा दूसरों को शिक्षा देने में जो पापबन्ध के कारण एकत्रित होते हैं, वह पाप से म युक्त दुःश्रुति नाम का अनर्थदण्ड है। {733} पापोपदेशहिंसादानापध्यान-दुःश्रुतीः पञ्च । प्राहुः प्रमादचर्यामनर्थदण्डानदण्डधराः॥ (रत्नक. श्रा. 75) 1. पापोपदेश, 2. हिंसादान, 3. अपध्यान, 4. दुःश्रुति और 5. प्रमादच- - ये पांच अनर्थदण्ड हैं। (जैन संस्कृति खण्ड/308
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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