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________________ $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$骹 卐 (688) जो आरंभं ण कुणदि अण्णं कारयदि णेव अणुमण्णे । हिंसा - संत-मणो चत्तारंभी हवे सो (अहिंसा अणुव्रत के अतिचार) जो श्रावक 'आरम्भ' (हिंसा - संकल्प) नहीं करता, न दूसरे से कराता है और जो आरम्भ करता है उसकी अनुमोदना नहीं करता, हिंसा से भयभीत मन वाले उस श्रावक को आरम्भत्यागी कहते हैं । 卐 बोझ 7 (689) बन्धो वधो दण्डातिताडना । कर्णाद्यवयवच्छेदोऽप्यतिभारातिरोपणम् अन्नपान का निरोध- ये पांच अहिंसाणुव्रत के अतिचार कहे गये हैं। (690) हु ॥ ( स्वा. कार्ति. 12 / 385 ) गतिरोधक ॥ अन्नपाननिरोधस्तु क्षुद्बाधादिकरोऽङ्गिनाम् । अहिंसाणुव्रतस्योक्ता अतिचारास्तु पञ्च ते ॥ 卐 कान आदि अवयवों का छेदना, अधिक भार लादना और भूख आदि की बाधा करने वाल 1. छेदन गति में रुकावट डालने वाला बन्ध, दण्ड आदि से अत्यधिक पीटना, वध, (ह. पु. 58/164-165) छेदनबन्धनपीडनमतिभारारोपणं व्यतीचाराः । आहारवारणाणि च, स्थूलवधाद् व्युपरतेः पञ्च ॥ - कान, नाक आदि का छेदन 2. बन्धन - स्वतन्त्र चलने-फिरने से रोकना, 3. पीडन (वध) - डण्डे और कोड़े आदि से मारना, 4. अतिभारारोपण - शक्ति से अधिक पांच कार्य अहिंसाणुव्रत के अतिचार हैं। ( रत्नक. श्री. 54 ) [ जैन संस्कृति खण्ड /286 लादना, 5. आहारवारणा-समय पर पर्याप्त भोजन नहीं देना। दुर्भावनापूर्वक किये गये ये $$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$ 卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐 馬 事
SR No.016129
Book TitleAhimsa Vishvakosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSubhadramuni
PublisherUniversity Publication
Publication Year2004
Total Pages602
LanguageHindi
ClassificationDictionary & Dictionary
File Size16 MB
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