________________
*$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$$J
卐卐卐卐卐卐卐卐编编编卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐事事事事事
4)
श्रावक - चर्या और अहिंसा
(अहिंसा की यथाशक्य साधनाः श्रावक - चर्या)
[ धर्माचरण का प्रारम्भिक सोपान गृहस्थ-धर्म है। मुनि-धर्म अपेक्षाकृत उच्च कोटि है। गृहस्थ / श्रावक या श्रमणोपासक सांसारिक व्यवहार में रहने के कारण समस्त अहिंसा-धर्म का पूर्णतया पालन करने में सक्षम नहीं होता, फिर भी उसे मर्यादित रूप में अहिंसा-धर्म का पालन करना ही होता है। गृहस्थ जीवन में पालनीय अहिंसा-सम्बन्धी कुछ नियमों को यहां प्रस्तुत किया जा रहा है। ]
● हिंसा व हिंसक वृत्तियों का संवर्धक : गद्यपान
(619)
अभिमानभयजुगुप्साहास्यारतिशोककामकोपाद्याः । हिंसायाः पर्यायाः सर्वेऽपि च सरकसन्निहिताः ॥
(620)
विवेक : संयमो ज्ञानं सत्यं शौचं दया क्षमा । मद्यात्प्रलीयते सर्वं तृप्या वह्निकणादिव ॥
编
卐
अभिमान, भय, ग्लानि, हास्य, अरति, शोक, काम, क्रोधादि हिंसा की पर्यायें हैं और यह सभी मदिरा के निकटवर्ती हैं। ( मदिरा के सेवन करने वाला काम-क्रोधादि के 卐 आवेश से अधिक ग्रस्त होता है और हिंसा - कर्म की और प्रवृत्त होता है, अतः मदिरा सेवन त्याज्य है ।)
शौच, दया, क्षमा आदि समस्त गुण नष्ट हो जाते हैं।
जैसे आग की एक ही चिनगारी से घास का बड़ा भारी ढेर जल कर भस्म हो जाता
है; वैसे ही मद्यपान से हेयोपादेय का विवेक, संयम, ज्ञान, सत्यवाणी, आचारशुद्धि रूप
( पुरु. 4/28/64)
卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐卐
[ जैन संस्कृति खण्ड /264
(है. योग. 3/16 )
בבבב
節
$$$$$$$$
$$$$$$$$$$$$的